कविता – पिताजी
अमर हो गये राम और सीताजी
बहुत प्यारे थे मेरे पिताजी
बारिश बिना ये धरती हे प्यासी
मेरे पिताजी का था नाम नरसिंह
खेत किनारे चमक रहा है रेती
मेरे पिताजी करते थे खेती
होली के त्योहार मे खेलते थे रँग
उतरायन में वो उड़ाते थे पतंग
घर हमारा लगता था जुगी कुटिया
दीपावाली मे वो लाते थे कपड़े
खेत में वो बहुत काम करते थे
भगवान शिवा न किसीसे डरते
कापड़ मिल मे वो करते थे काम
रख दिया था गुलाब मेरा नाम
पढ़ने न आता था उन्हे बाइबल
लेकिन वो चलाते थे बहूत साइकिल
गाँवमे थे मुखिया फूलभाई नामदार
मेरे पिताजी थे मिल कामदार
हमारे घर में आया था एक बार चिता
पिताजी ने कहा कि तुम सिगरेट मत पीना
पढ़ना चाहे तुम गीता और भजन
गुलाब चंद कहे तुम करना पिताजी का पूजन
— गुलाब चंद पटेल