मौन
सुनो…
हमसफ़र बन न सही
साथी बन कुछ दूर तक
संग चलते हैं…
देखते हैं साथ साथ
छोटी परछाइयों का बड़ा होना
बढ़ते बढ़ते फिर खो जाना….
लाल सूरज का जलते जलते
केसरी होना
और फिर लालिमा से आरंभ…
चाँद का बढ़ते बढ़ते थक जाना
और घटते घटते फिर से
नई शुरुवात …
पर याद रहे…
इस घटने बढ़ने के मध्य
आता है मौन….
पहले पहल तो
खटकने लगेगा ये मौन…..
पर जरूरी होता है….
हां …..जरूरी होता है
मौन भी…..