मुन्तज़िर
मेरी ज़ुल्फ़ें मुंतज़िर तेरी उंगलियों की मेरी रूह को तलाश तेरी ख़ुशबुओं की तुझसे मिलती रहती हूं ख़्वाबों में मैं
Read Moreधरती हम से पूछ रही है कब तक सींचोगे तुम मुझको अपनों के ही खून से ज़रा भी दर्द नहीं
Read Moreकर-कर सेवा पाई मेवा, अब सारे मकरंद हो गए झाड़ कटीले वन-उपवन के जो-जो उन्हें पसंद हो गए दूर रहे
Read Moreइस देश को अब तक सबसे ज्यादे नुकसान पहले ‘धर्मांधता ‘ने पहुँचाया फिर ‘जातिवाद’ ने और अब आज की ‘सिद्धांत
Read Moreयह लोकतंत्र है ‘, अब यह मात्र रस्म अदायगी भर रह गई है, क्योंकि लोकतंत्र रूपी इस पेड़ में सामंतवाद,
Read Moreसुबह बिली रॉस जल्दी आ गया। मगर पीछे पीछे उसकी माँ उसका बस्ता लेकर गुस्से से लाल होती ,आ धमकी।
Read Moreतुम कहाँ हो? खोये खोये रहते हो क्या तुम्हारा कोई वजूद है? या हासिल करना चाहते हो कुछ नया। जिंदगी
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