गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अपनों से जब दूर पिताजी होते हैँ
बेबस और मज़बूरपिताज़ी होते हैँ
बेटे साथ खड़े होते हैँ जब उनके
हिम्मत से भरपूर पिताज़ी होते हैँ
दादाजी से मिलनें जब भी जाते हैँ
थक कर के तब चूर पिताज़ी होते हैँ
अम्मा जबभी कोई फरमाईश करतीं हैँ
तब कितने मज़बूर पिताज़ी होते हैँ
बेटे बहुएँ मिलकर सेवा करते हैँ
ऐसे भी मशहूर पिताज़ी होते हैँ
बच्चों के संग में बच्चे बन जाते हैँ
ज़न्नत की इक हूर पिताज़ी होते हैँ
पूरा कुनबा एक जगह जब होता है
रौशन सा इक नूर पिताज़ी होते हैँ
हर ग़लती पर सबको टोका करते हैँ
आदत से मज़बूर पिता ज़ी होते हैँ
बहन बेटियों के लिऐ है प्यार बहुत
पर पाकिट से मज़बूर पिता ज़ी होते हैँ
बच्चे जब उनकी बात नहीँ सुनते
हिटलर से भी क्रूर पिता ज़ी होते हैँ
उदास देखते हैँ किसी को जब अपने घर में
तब ग़म से रन्जूर पिता ज़ी होते हैँ
जब कोई अच्छी कविता लिख लेते हैँ
कबिरा और कभी सूर पिताज़ी होते हैँ

— डॉ रमेश कटारिया पारस

डॉ. रमेश कटारिया पारस

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