मंजिल
मंजिल दूर होती हैं तब,
कदम तेजी से बढ़ते हैं,
ठोकर खा गिरते हैं,
सम्भल कर उठते हैं,
राह में मिलते राही भी,
कभी देते साथ तो,
कभी छोड़ देते साथ हैं,
फिर भी पाना है लक्ष्य जिसको,
वो रुकता नहीं ठहरता नहीं,
दुःखी नहीं होता हैं,
साथ छोड़ने वालों के लिए,
वो तो राही है अपनी ,
मंजिल का जिसको सिर्फ,
आगे ही बढ़ते जाना हैं,
पर मंजिल जब आती,
नज़र उसको तब क्यों,
कदम उसके थक जाते,
चाल क्यों धीमी हो जाती हैं??
जबकि मंजिल के करीब होता है वो ।।।।
सारिका औदिच्य