कविता

मंजिल

मंजिल दूर होती हैं तब,
कदम तेजी से बढ़ते हैं,
ठोकर खा गिरते हैं,
सम्भल कर उठते हैं,
राह में मिलते राही भी,
कभी देते साथ तो,
कभी छोड़ देते साथ हैं,
फिर भी पाना है लक्ष्य जिसको,
वो रुकता नहीं ठहरता नहीं,
दुःखी नहीं होता हैं,
साथ छोड़ने वालों के लिए,
वो तो राही है अपनी ,
मंजिल का जिसको सिर्फ,
आगे ही बढ़ते जाना हैं,
पर मंजिल जब आती,
नज़र उसको तब क्यों,
कदम उसके थक जाते,
चाल क्यों धीमी हो जाती हैं??
जबकि मंजिल के करीब होता है वो ।।।।

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।