कविता

मन

भव तरल गरल उन्माद सरल,
निश्चित उत्कंठा मन की से,
जल -थल अतल सहित उद्भास,
भव-बन्धन मुक्त अजान किये।

मन आह्लादित हो सफ़र सुनिश्चित,
पूर्ण  तपस्या  भान  किये  ।
खुलकर उद्वेग प्रदर्शित कर,
अनुमोदन सब स्वीकार हुए ।

उन्मुक्त गगन आह्वाहन मन के,
निज इच्छा  विश्राम  दिये ।
बन्धन मुक्त दिशा फिर चमके,
स्व पुनः नवल इतिहास जियें ।

स्पृहा मिश्रा “असीम”