गीत
हृदय व्याकुल, नैन में घन घोर,वो आये नहीं।
कोशिशें मैंने करी पुरजोर,वो आये नहीं ।
कोयलों ठहरों ,सुनो, मत गीत गाओ!
मधुकरों कलियों पें तुम मत गुनगुनाओं!
हो रहा है कर्णभेदी शोर, वो आये नहीं।
कोशिशें …………………….
भीड़ में दिन कट गया फिर, रात तनहा आ गई।
अंधेरे की एक चादर ,मेरे मन पे छा गई ।
कल्पनाएँ हो गई कमजोर,वो आये नही ।
कोशिशें…………………
गिन के तारे रात काटी ,चाँद बूढ़ा हो गया।
ओड़कर ऊषा की चादर,तिमिर देखो सो गया।
आ गया किरणों को लेके भोर, वो आये नहीं।
कोशिशें…………………………….
आ गया पतझार बूढ़ा,पात पीले हो गये ।
हो चुके बेरंग उपवन, देख मधुकर रो गये ।
टूटती साँसो की हर दिन डोर,वो आये नहीं ।
कोशिशें ……………
…..© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी 9/1/2020 गोरखपुर