नवगीत – चूल्हे में जलती रोती
देख उबलती खिचड़ी मन की हांडी में
आज तवे पर जल बैठी फिर से रोटी
एक तरफ़ चूल्हे में ये रोती लकड़ी
आधी गीली कलमूई आधी सूखी
ऊपर से ये लंगड़ा चिमटा दुखदाई
और फूंकनी मेरी साँसों की भूखी
मन में घूमे कितने हाय हिंडोले ये
और समस्या घर की ये छोटी मोटी
आज तवे पर जल बैठी फिर से रोटी
जबसे इसने खोले हैं कुछ वातायन
छत की टंकी रहती है़ हर दम खाली
रोज टपकते हैं पापड़ दीवारों से
हुई ठसाठस शौचालय की है़ नाली
कभी नहीं जाती है़ अपने पाले में
मेरी क़िस्मत के कैरम की ये गोटी
आज तवे पर जल बैठी फिर से रोटी
बबलू की टीशर्ट बगल से फटी हुई
आँखों की कमज़ोर हुई है़ बीनाई
सास ससुर को घेर लिया बीमारी ने
टॉमी भी करता फिरता है़ उबकाई
बिजली का बिल भरा नहीं था कट ही गई
अंधियारा भी नोचे है़ बोटी बोटी
आज तवे पर जल बैठी फिर से रोटी
दरवाजे भी खूब सिसकते रातों में जब से तुम अपनों से रिश्ता तोड़ गये
जर्जर घर में मकड़ी और छिपकलियां हैं मुझको ये कैसी दुनिया में छोड़ गये
पहले लगता था यह रब की मर्जी है़
अब लगता है़ मेरी क़िस्मत ही खोटी
आज तवे पर जल बैठी फिर से रोटी
— राजेश कुमारी राज