कविता

रिश्ते

रिश्ते….
हां अलग-अलग होते हैं रिश्ते
कुछ रिश्ते जुड़ते हैं शब्दों से
और कुछ दिल से….
जबकि कुछ रिश्ते बस रिसते हैं
वजह बेवजह ही

दिल के रिश्तों में
जरूरत नही होती शब्दो की
वो बयां होते हैं
नजरों से, अहसासों से

कभी देखा है
किसी मोमबत्ती को जलते हुए …
कितनी शांति और सौम्यता से
जलाता है धागा खुद को..
और अपना आस्तित्व, वजूद
अपना रूप
हँसते हुए खो देती है मोम ….

सुनो… यही तो होता है ना प्रेम
एक दूजे की खातिर बिखरना और
बिखर कर भी सिमटना

हां कई बार बिखर कर सिमटने में
पड़ जाती है दरारें भी…
पर याद रखना
जब भी दिख जाए दरार
इसे जल्द से जल्द भरने की कोशिश करना

जो समय रहते न भरा जाए
तो खाई बनने में वक़्त नही लगता।

– प्रिया

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]