जैसी करनी वैसी भरनी
कैलाश पर्वत पर विराजमान महादेव जी से एक दिन माता पार्वती जी बोलीं ,” हे नाथ ! माता आदिशक्ति की अनुकंपा से आप त्रिदेवों ने इस ब्रम्हांड और तत्पश्चात भूलोक की संरचना की जिसे नदियों , पहाड़ों , वनों और उनमें विचरण करते तरह तरह के जीव जंतुओं से आबाद किया ! लेकिन ये मनुष्य नामक प्राणी को बनाने के पिछे आप लोगों की क्या सोच थी समझ से परे है ! “
” तुम सही कह रही हो देवी ! हमें भी अब ऐसा ही महसूस हो रहा है । हमने मनुष्य को बनाकर उसे सोचने ,समझने , बोलने व कुछ भी कर पाने की शक्ति प्रदान की , अपना स्वरूप भी प्रदान किया ताकि वह इस धरती पर सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बनकर सबके साथ साथ प्रकृति से भी सामंजस्य स्थापित कर हमारी बनाई गई धरती का भी संरक्षण करे !
हमने उसे साफ सुंदर हरा भरा वातावरण दिया ताकि वह स्वस्थ रहकर सुखद जीवन व्यतीत कर सके , उसे ताजी हवा मिल सके । फलदार वृक्ष लगाए गए ताकि उसे अलग अलग मौसम में अलग अलग फलों का स्वाद मिल सके । क्षुधापूर्ति के लिए विभिन्न अनाज बनाये ,साथ ही तरह तरह की सब्जियों और मसालों के पौधे और तेल उत्पन्न कर सकने वाले तेलहन की फसलें भी तो इंसान के लिए ही बनाई गई हैं । उसका उदर भी इस तरह का बनाया गया है कि वह शुद्ध शाकाहार अपना कर स्वयं को पूर्ण स्वस्थ रखे । उसे सोचने समझने की शक्ति दी ,दिमाग दिया ताकि वह सही गलत की पहचान कर सके । एक अदद दिल दिया जिसमें भावनाओं के साथ ही प्रेम करुणा अपनापन व भाईचारे के साथ ही संवेदनशीलता भी भरी गई लेकिन इंसान आज क्या कर रहा है ?
इंसान आज अपनी जिह्वा के स्वाद के नाम पर पशु पक्षियों से क्रूरता से पेश आता है व दोहरे मापदंड अपनाता है । एक तरफ जीवों पर दया करने की बात कहता है , दूसरी तरफ उनका ही भक्षण भी करता है । दिमाग का इस्तेमाल कर उसने अपनी सुख सुविधा के अनगिनत साधन बना लिए हैं जिसकी वजह से अब उसकी दिनचर्या असंतुलित हो गई है और इसी वजह से तरह तरह की व्याधियों का भी वह शिकार होने लगा है । इतना ही नहीं इंसान विकास के नाम पर जिस तरह प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहा है उसीका नतीजा है प्राकृतिक आपदाएँ , कभी अति वृष्टि तो कभी सूखा और कभी कभी तो इनकी मनमानियों से तंग आकर धरती भी डोल पड़ती है तब इन्हें समझ में आता है कि प्रकृति के समक्ष इनकी कोई औकात नहीं लेकिन वाह रे इंसान ! गजब का धैर्य है इस जीव में । सब कुछ भुलाकर वह फिर जुट जाता है अपनी औकात से बढ़कर कुछ नया कर पाने की जिद्द लिए नए अविष्कार करने में । इसी जुनून के तहत चाँद तक अपने कदमों के निशान छोड़ने में कामयाब रहनेवाला इंसान आगे मंगल तक अपने विमानों को भेजने में कामयाब हो गया है । इंद्रदेव को तो आंशका हो रही थी एक दिन कि ये इंसान किसी दिन स्वर्ग पर ही हमला न कर दे । यहाँ तक तो ठीक है लेकिन आपसी ईर्ष्या द्वेष व नफरत की भावना के चलते इंसान ने खुद ही खुद के संहार का ऐसा ऐसा खतरनाक हथियार बना लिया है कि हमें चिंता हो गई कि शायद हमें धरतीपर नवसृजन के लिए प्रलय लाने या सृष्टि का संहार करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । इंसान अपने विनाश का सामान सिर्फ हथियारों के रूप में ही नहीं बनाता बल्कि अपने क्रियाकलापों से कुदरत को भी मजबूर करते रहता है कि वह उसके लिए नई नई बीमारियाँ बनाती रहे जिनका तत्काल इलाज उपलब्ध नहीं होता और जब तक इनका इलाज शुरू होता है लाखों इंसान काल के गाल में समा चुके होते हैं । पूर्व में हैजा , चेचक जैसी महामारियों में गाँव के गाँव उजड़ गए लेकिन इंसान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया । लाईलाज समझी जानेवाली बीमारी एड्स से भी अब उसे डर नहीं रहा और अपने अनैतिक कारनामों के लिए नए व सुरक्षित तरीके ईजाद कर लिए लेकिन कुदरत कब तक इनकी अनियमितताओं को सहन करती । अब कुदरत ने एक ऐसी महामारी कॉरोना का ईजाद किया है जिसके समक्ष तो फिलहाल सम्पूर्ण मानव समाज नतमस्तक हो रहा है । क्या कहूँ देवी ! बड़ा ही करुण दृश्य उपस्थित है आज विश्व नामक रंगमंच के पटल पर जिसे देखकर मन में करुणा का भाव तो जागृत हो ही रहा है लेकिन साथ ही दिल के किसी कोने में कहीं न कहीं संतोष भी महसूस हो रहा है । “
” ऐसा क्यों स्वामी ? ” अचरज से माता पार्वती बोलीं !
स्मित हास्य के साथ भोलेबाबा ने आगे कहना शुरू किया ,” वो इसलिए देवी जी , कि हमेशा अकड़ में रहनेवाला इंसान अब इसे मानव जाति के लिए एक बड़ा संकट मान रहा है और इसी बहाने बात बात में आपस में लड़ने झगड़ने वाले इंसान अब कम से कम एकजुट तो हो रहे है । जाति धर्म संप्रदाय व देश की सीमाओं से उपर उठकर अब सब मिलकर मानव जाति को बचाने में जुट गए हैं । इतना ही नहीं , अब तो ये सात्विक खानपान व शुद्ध आचार विचार के भी पक्षधर हो रहे हैं । गरीबों का खून चूसने वाले धनिकों ने भी गरीबों की मदद के लिए अपने अपने खजानों के मुंह खोल दिए हैं । जो थोड़े बहुत सक्षम हैं वह भी अपने अपने स्तर पर जरूरतमंदों की सहायता कर रहे हैं । एक वाक्य में कहूं तो धरती पर इंसानों में अब इंसानियत जागृत हो गई है ।यही तो हम चाहते थे न ? लेकिन अफसोस भी है देवी कि यहां तक पहुंचने में इंसान ने कितना नुकसान उठा लिया है और मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं होता कि ये इंसान इसी तरह हमेशा अपनी इंसानियत पर टिके रहेंगे । मुझे पता है जैसे ही इन्होंने इस बीमारी पर काबू पा लिया ,ये फिर से अंधाधुंध वही गलती दोहराएंगे ….! ” कहते हुए महादेव तनिक चिंतित नजर आने लगे थे ।
” हे देवाधिदेव ! इन क्षुद्र इंसानों के लिए आप क्यों चिंतित हो रहे हैं ? अगर ये अब भी नहीं चेते तो फिर तो वही होगा ….जैसी करनी वैसी भरनी !”
” तुम ठीक कह रही हो देवी !” कहते हुए डमरू धारी के अधरों पर मुस्कान गहरी हो गई थी ।
लेख में एक बहुत अच्छा सन्देश दिया गया है। लेख का केंद्रीय विचार मनुष्य का प्रकृति का अंधाधुन्द शोषण और मूक व निर्दोष पशुओं के प्रति संवेदना का आपका भाव बहुत अच्छा लगा। लेख में मनुष्य के अमर्यादित एवं अंकुश रहित अप्राकृतिक जीवन के अज्ञानता एवं मूर्खतापूर्ण कृत्यों पर भी प्रकाश डाला गया है। बहुत अच्छा लेख है यह। सादर नमस्ते एवं धन्यवाद जी।