कविता

भूख कब मिटेगी

भूख से पेट व्याकुल ,
प्यास से सूखते होंठ
दो रोटी ही माँग रहे ,
शब्दों को तो रोक।
पेट की भूख बूझा सको
सहजता का वो मार्ग दो
ये मजदूर है इनकी
हालत तो सुधार दो।।
नहीं चाहिए इनको आराम,
नहीं चाहिए इनको दौलत ,
नहीं चाहिए इनको झूठी शान,
इनको चाहिए सिर्फ इनका काम
जो दे इनके मजदूरी का दाम।।
ये सभी हालात समझते,
पर मजबूरी इनकी न समझते,
इनके जज्बात का कद्र करो
सक्षम होकर बढ़ाओ हाथ,
यही हाथ बदलगें मंदी के हालात।।
विकलांग होते व्यवस्थाओं पर
कबतक पर्दा डालोगे
सिर्फ प्रवचनों में उलझाकर
भूखे ही सबको मारोगे।
मदद की मलाई देखो बँट गयी
कागज पेन चली
आलमारियो में मदद सज गई
दरअसल यही विचित्र तस्वीर
हर आपदा पर उभर रही।
जानता हूँ यह महामारी है
लेकिन पहले पेट भरना जरूरी
दुखो का पहाड़ टूटा इनपर
बच्चो का मुस्कान जरूरी ।
मुफ्त ज्ञान तो सब बाँटते
आँसू बह रहे गली गली
फेसबूक नेता की क्षेत्र हुई
व्हाट्स बनी प्रवचन की गली।।
खोखले वादे और इरादे
इन रहनुमाओं के मन भावे
धरती अम्बर रो रहा
फिर भी इन्हें बहस ही भावे।
— आशुतोष 

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)