मैं दरख़्त हूँ
आप चाहें नाम भले ही कोइ भी दे दें
चाहें तो नीम, बरगद, पलाश या फिर
पारिजातक !
मैं दरख़्त हूँ
क्यूंकि मैं जानता हूँ मुझे एक ही जगह
खड़े रहकर अपने कर्तव्य को निभाना है
इमान से !
मैं दरख़्त हूँ
मैं जानता हूँ कि मुझे किसी से आस नहीं
न रखनी है, जो बन पड़े उनके लिए करना
लगन से !
मैं दरख़्त हूँ
मेरे अंदर की कडवाहट होते हुए भी मुझे
उसी कडवाहट को औषध बनकर रहना
आपके लिए !
मैं दरख़्त हूँ
मेरा शरीर बड़ा और पत्ते भी फिर भी मुझे
आपको वो ठंडक देनी है जहाँ सुख मिले
और सुकून !
मैं दरख़्त हूँ
कड़ी धूप में भी अडिग खड़े रहकर मुझे
कुदरत के वैभव को आपकी आँखों में मुझे
बसाना है !
मैं दरख़्त हूँ
देववृक्ष बनकर आपके आँगन में मुझे
वो सुगंध फैलानी है जो आपके मन को
शांति दें !
हाँ, मैं दरख़्त हूँ
मेरा कर्तव्य है कि अंतिम समय तक मुझे
आपको साथ देना हैं चाहें जलाकर बनाओ
दो रोटियाँ !