कविता

पिता

बिना बात गुस्सा दिखलाते
कभी कभी खिलखिलाते हैं पिता

बाहर से नाराज़ जतलाते
अंतर्मन से आशीष बरसाते हैं पिता

जीवन के पहले बन शिक्षक
सात रंग के इन्द्रधनुष से परिचय करवाते है पिता

अंगुली थामकर देते सहारा पग पग पर
पहला कदम कहाँ रखना है यही समझाते हैं पिता

सबकी फरमाइश पूरी करते
खुद की जरूरतों को भी छिपा जाते है पिता

दुःख के हर कोने को
बिन बोले ही समझ जाते है मेरे पिता

जीवन के हर पहलू के साथ
अपने अनुभवों से अवगत करवाते है पिता

जीवन में कभी असमंजस के पलों में
अपना साथ और विश्वास लिए साथ खड़े रहते हैं पिता

हर छोटी सी आहट को पाते ही
अनजान साये को भी पहचान जाते हैं पिता

हिम्मत और होसलों उडान भरते
सदा मुझसे बड़े बनो ऐसा आशीर्वाद देते हैं पिता

— शोभा गोयल

शोभा गोयल

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