नव विमर्श : इक्कीसवीं सदी विषय पर (अंतर्राष्ट्रीय बहु विषयक) वेबिनार सम्पन्न
भिवानी | भिवानी न्यूज, भिवानी (हरियाणा) व बृजलोक साहित्य, कला, संस्कृति अकादमी आगरा (उ. प्र.) के संयुक्त तत्वावधान में नव विमर्श : इक्कीसवीं सदी विषय पर अंतरराष्ट्रीय बहु विषयक वेबिनार में देश-विदेश के विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। टांटिया विश्वविद्यालय श्रीगंगानगर के परीक्षा नियंत्रक डॉ. राजेन्द्र गोदारा ने जीवन में शिक्षा के महत्व को बताते हुए कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में सदैव शिक्षा प्राप्ति की तरफ अग्रसर रहना चाहिए। शिक्षा ही एकमात्र एक ऐसा धन है जिसको कोई चुरा नहीं सकता। डॉ. विजय महादेव गाडे भीलवड़ी (महाराष्ट्र) ने अपने उद्बोधन में कहा कि आदिवासी, नारी, दलित आदि विमर्शो पर बहुत अधिक शोध कार्य हो चुका है। वर्तमान समय में पुरूष विमर्श पर कार्य करने का समय है। जिस प्रकार से प्राचीन काल में नारी पीडि़त थी उसी प्रकार वर्तमान समय में पुरूष भी अनेकों प्रकार से पीडि़त है। डॉ. रेखा सोनी उपप्राचार्या श्रीगंगानगर राजस्थान ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान समय में कोरोना महामारी से हम जूझ रहे है। ऐसी विकट परिस्थितियों में साहित्य सृजन व पाठन में अपने आप को व्यस्त रखकर हम मनोरोगी होने से बच सकते हैं।
युवा साहित्यकार राकेश शंकर भारती यूक्रेन ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान समय में विश्व के विभिन्न देशों में विभिन्न विमर्शों पर शोध कार्य हो रहा है। यह कार्य प्रशंसनीय है इसे निरंतरता में जारी रखना प्राध्यापकों व शोध छात्रों का दायित्व बनता है। डॉ. मो. रियाज़ ख़ान में अपने उद्बोधन में कहा कि कोरोना काल में मीडिया का दायित्व बढ़ गया है। बहुत से क्षेत्रों में मीडिया अच्छा कार्य कर रही है जिससे सचेत होकर आज विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाले देशों में शुमार हमारा देश इस महामारी से बचा हुआ है। हमें मीडिया के माध्यम से विश्व के देशों में फैली महामारी के बारे में सूचनाएं प्राप्त होती रहती है जिससे हम समय रहते अपना बचाव कर रहे हैं। डॉ. विनोद तनेजा अमृतसर ने अपने उद्बोधन में कहा कि ऐसे वेबिनारों का आयोजन शोधार्थी, प्राध्यापक और साहित्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। वेबिनार के माध्यम से हम अपने विचार देश-विदेश में बैठे व्यक्तियों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं और उनके विचार से घर बैठे अवगत हो सकते हैं।
डॉ. मंजू चौहान मोरना बिजनौर ने अपने सम्बोधन में कहा कि 10 साल पहले हमारे समाज में बुजुर्गों की बड़ी सेवा होती है। आधुनिकता के दौर में हम बुजुर्गों की सेवा भाव को भूलकर भटक गए है, यह चिंतनीय विषय है। पुराने समय में अनाथ आश्रम आदि होते थे किन्तू वर्तमान समय में वृद्ध आश्रम भी काफी संख्या में हमारे देश में खुल रहे है जो विचारणीय है। हमें अपनी प्राचीन सभ्यता संस्कृति को अपनाकर वृद्धों का सम्मान करना चाहिए। डॉ. सुशीला आर्य ने नारी विमर्श पर अपने विचार रखते हुए कहा कि स्त्री जिस घर में स्त्री की पूजा होती है वहीं पर देवता निवास करते हैं।
वेबिनार के मुख्य डॉ. नरेश सिहाग एडवोकेट ने अपने सम्बोधन में कहा कि कोरोना काल में हम अपने घरों में नजरबंद है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह जब तक अपने ईष्ट मित्रों से रूबरू नहीं हो लेता तब तक उसे चैन नहीं मिलता। इसलिए हम समाचार पत्रों व अन्य मीडिया माध्यमों से पढ़-देख पा रहे हैं कि बहुत से लोग मानसिक रोगी होकर आत्महत्या जैसे अमानवीय कदम भी उठा रहे है। इन परिस्थितियों से बचने के लिए समय-समय पर ऐसे वेबिनारों का आयोजन विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित करना चाहिए क्योंकि इस बहाने हम एक-दूसरे से जुड़कर अपने विचार आदान प्रदान कर सकते हैं। पुस्तकें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र हैं जो लॉकडाउन में भी अपनी मित्रता निभा रही है। अंत में विनोद कुमार, संदीप सिंह व मुकेश कुमार ऋषि वर्मा ने सभी प्रतिनिधियों का तहेदिल से धन्यवाद ज्ञापित किया और भविष्य में इसी प्रकार से सहयोग देने की अपील की।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा