गीत/नवगीत

गीत – सावन के नाम

बरखा,बादल,बिजली,पानी,पावस के आयाम ।
शीतल,मंद समीर,फुहारें,सब सावन के नाम ।।

कभी रूठ जाते हैं बादल,  कभी झड़ी लग जाती
सावन में तो बरखा रानी, नित नव ढंग दिखाती

पर्व-तीज,त्यौहार अनेकों,सब ही हैं अभिराम।
शीतल,मंद समीर,फुहारें,सब सावन के नाम ।।

मोर नाचता है कानन में, भीतर भी इक मोर
मिलन-विरह के मारे सब ही, भीतर पलता चोर

गरज रहे घन,चपल दामिनी,कौन करे आराम ।
शीतल-मंद समीर,फुहारें,सब सावन के नाम ।।

बचपन के लम्हों में खोई, राह देखती बाबुल की,
हर नारी को पीहर भाता, यादें आतीं पल-पल की

रक्षाबंधन पर्व सुहाना,लगता तीरथधाम ।
शीतल-मंद समीर,फुहारें,सब सावन के नाम ।।

टिकुली,चूड़ी,मेंहदी,उबटन, की आती है बेला
झूले पड़ते,कजरी होती, घर-घर लगता मेला
वह भी अब तो ख़ास लग रहा,जो हरदम है आम ।
शीतल-मंद समीर फुहारें,सब सावन के नाम ।।
— डॉ. नीलम खरे

डॉ. नीलम खरे

डॉ.नीलम खरे आज़ाद वार्ड, मंडला (म.प्र) -481661