चुनाव आचार संहिता जन विरोधी
सभी पार्टियो के नेता जनता की सेवा करने का आश्वासन देकर वोट मांगते हैँ
और चुनाव जीतने के बाद किसी को अपने किए हुऐ वादे याद नहीँ रहते ये आपने देखा होगा ज्यादातर नेता चुनाव मेंं किया हुआ ख़र्च ही ब्याज समेत वसूलने मेंं लगे रहते हैँ
और फ़िर पांच वर्ष बाद चुनाव के वक़्त फ़िर प्रकट होते हैँ
तब उन्हे जनता याद दिलाती है कि हमारी गली मेंं नालियाँ नहीँ हैँ सड़क टूटी है नल नहीँ आते हैँ
तब नेताजी आनन फ़ानन मेंं वह काम कराते हैँ लेकिन तभी चुनाव आचार संहिता लग जाती है
और जो काम हो रहे थे वे सब काम अधूरे ही रह जाते हैँ
और चुनाव मेंं हारने के बाद नेताजी वह अधूरे काम कराने लायक नहीँ रहते
और जीतने के बाद वह काम कराने की ज़रूरत नहीँ समझते
इसलिए आचार संहिता मेंं जनता के काम कराने पर प्रतिबंध नहीँ होना चाहिऐ कम से कम चुनाव से पहिले तो जनता का भला होने दिया जाये
— डॉ रमेश कटारिया पारस