परनिन्दा मेंं इतना रस क्यों
लोग आज़ कल परनिन्दा मेंं इतना रस लेते हैँ कि पूछो मत
जहाँ दो चार मित्र मिले नहीँ कि होने लगी परनिंदा
एक शुरू हुआ तो दूसरा भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेनें लगेगा और याद कर कर के अपने अनुभव बताने लगेगा यदि अपने अनुभव ना हुऐ तो दूसरों से सुने हुऐ किस्से सुनाने लगेगा
और हाँ जिसके घर मेंं आप सुना रहे होंगे वह भी मज़े लेकर सुनेगा और उन सब की ख़ातिरदारी भी करेगा और यदि सुनाने वाले को आभास हो जाये कि आप किसकी बुराई सुनने मेंं आनन्द लेते हैँ तो जब भी उसका मन चाय नाश्ता करने का होगा वह आपके घर आ धमकेगा और आपके विरोधी कि सुनी अनसुनी कुछ मनगढ़ंत बातें सुना कर आपको ख़ुश कर देगा और चाय नाश्ता कर कर चलता बनेगा क्योंकि उसे पता है कि आप अपने विरोधी से उसकी कही हुईं बातों का सत्यापन तो कराएंगे नहीँ इसीलिए ऐसे
दोमुंहें लोगोँ का चुगली करने का कारोबार सफ़लता पूर्वक चलता रहता है ऐसे लोग समाज़ द्रोही और विद्रोही की श्रेणी मेंं आते हैँ कुछ लोगोँ को ख़ास कर दोयम दर्जे के साहित्यकारोँ को ये कला सरस्वती माता से प्रसाद के रूप मेंं मिली होती है
ये लोग शहर मेंं बाहर से आये साहित्यकारोँ के सामनें अपने ही शहर के साहित्यकारोँ की इतनी बुराई और निन्दा करते हैँ और ये भी नहीँ सोचते कि बाहर से आने वाला साहित्यकार आपके बारे मेंं और आपके नगर के साहित्यकारोँ के विषय मेंं क्या धारणा बनायेगा ऐसे लोग अपने शहर का और ख़ुद अपना बहुत बड़ा नुकसान करते हैँ और हाँ वे ये भी नहीँ सोचते कि जो आदमीं आपके सामनें दूसरों की बुराई कर रहा है वह दूसरों के सामनें आपकी भी बुराई करता होगा क्योंकि उसे तो अपना उल्लू सीधा करना होता है कुछ तो इस क्षेत्र के उदभट्ट विद्वान हैँ दूसरों की बुराई निन्दा करने मेंं इन्होने पी एच डी कर रखी है ये जब तक दो चार लोगोँ की निन्दा ना कर लें इनको खाना हज़म नहीँ होता
हालांकि ऐसे लोगोँ को कोई अपने पास भी बिठाना पसन्द नहीँ करता लेकिन ऐसे महारथी अपनी करतूतों से फ़िर भी बाज़ नहीँ आते हैँ
अरे भई नाश्ता करने के लिऐ किसी दूसरे मित्र की बुराई करने से अच्छा है कि आप उससे कहें कि फलां साहित्यकार आपकी बहुत तारीफ़ कर रहा था तो मेरा विश्वास है कि वह ज़्यादा ख़ुश होगा और आपका अच्छा स्वागत और आवभगत करेगा
मेरे एक मित्र हैँ वे हमेशा सब की तारीफ़ करते हैँ
एक बार मैंने उनसे कहा कुछ सामान लेना है तो वे बोले चलो और एक ऐसे दुकानदार के पास ले गये जो घटिया माल देता था और पैसे भी ज़्यादा लेता था लेकिन उन्होने उसकी ऐसी तारीफ़ कि देखो ये आदमीं इनसे मिलो ये बहुत ही सज्जन और ईमानदार है इनकी दुकान पर हर माल बढ़िया और बाजार से सस्ता और उचित दाम पर मिलेगा मैं तो हर माल इन्ही भाई साहब से लेता हूँ
इतनी प्रसंशा सुनने के बाद मज़ाल है जो वह ग़लत सामान देता और क़ीमत भी वाजिब ऊपर से उसने गन्ने का रस भी पिलाया
आगे से आप किसी की निन्दा या बुराई ना करें बल्कि ये कहें कि वह आपकी बहुत प्रशंसा कर रहा था इससे समाज़ मेंं आपकी और आपके शहर की भी इज्ज़त बढ़ेगी
आज़मा कर देखें पहले इस्तेमाल करें फ़िर विश्वास करें
— डॉ रमेश कटारिया पारस