कविता

वियोग धूप में सदा तुषार सा गला प्रिये*

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स्नेह की मधुर बयार में सदा पला प्रिये,
वियोग दीप में लिपट पतंगा सा जला प्रिये!

चूमती धरा उषा किरण उठी निहारती,
झूमती निशा गई उतारती सी आरती,
डोलती है मंद वायु बोलती पपीहरी,
खोलती सुगंधि कोष मालती मनोहरी,

किन्तु दूर दूर मैं उदास भाव से भरा,
वियोग धूप में सदा तुषार सा गला प्रिये!

पास तुम रहो ,भले ही आसमान हो,
प्रसन्न तुम रहो, भले ही रुठता जहान हो,
एक सूत में बंधे रहें विलग सा प्राण हो,
चला रहे मनुष्य जब कुचक्र के ही वाण हो!

रोम रोम में भरी मधुर अनन्त कामना,
किन्तु दूर दूर कौन जी सका भला प्रिये!

जलो प्राण मेरे, शलभ ने कहा,
सिर हिला कर पुनः दीप जलाने लगा!

रात आती नयी सी खुमारी लिए,
चांद तारों की मंजुल सवारी लिए,
पास पाकर धरा की किरण हंस रही ,
थी चमन से मिलन की बीमारी लिए!

खुलो कंज मेरे, भ्रमर ने कहा-
अंक तेरे-मधुर प्यार
पलने लगा!

रात घटने लगी, राग बढ़ता गया,
भोर हंसने लगी दीप जलता गया,
पास आया शलभ नेह लेकर नया-
दीप की हर किरण में मचलने लगा!

अश्रु ढलते रहे अंग जलते गये,
प्यार छोड़ा नहीं, मौन दहने लगा!!
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171