गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ये किस सांचे में ढाला जा रहा है ।
मेरे हक़ का निवाला जा रहा है ।।

मुनाफ़ा जिनसे हासिल था उन्हीं का ।
निकाला अब दिवाला जा रहा है ।

अज़ब है ये तुम्हारी मीडिया भी ।
हमेशा सच को टाला जा रहा है ।।

वतन को डस लिया वो सर्प देखो ।
जिसे ग़फ़लत में पाला जा रहा है ।।

गुनाहों को छुपाने के लिए क्यूँ ।
यूँ पर्दा ख़ूब डाला जा रहा है ।।

यहाँ नीलामियों का दौर साहब ।
वतन कैसे सँभाला जा रहा है ।।

तरक़्की कर लिया है मुल्क ने अब ।
शिगूफा यह उछाला जा रहा है ।।

किसी जमहूरियत की ही जुबाँ पर।
लगाया रोज़ ताला जा रहा है ।।

फ़रेबी शम्स तू कुछ तो बता दे ।
ज़मीं से क्यूँ उजाला जा रहा है ।।

— डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]