कविता

हम सब एक बनें.. 

कई प्रदेश हैं देश में हमारे।
गुंथे हार में सुरभित सुमन प्यारे।
विविध रूप-रंग, भाषा निराली ,
भारत के अंग हैं कितने सारे ।।
विभिन्न वेश-भूषा, मधुर बोलियां।
अनेकता में एकता की टोलियां।
मातृभूमि, कर्मभूमी सब यही ,
हम भरें खुशियों से सबकी झोलियां।
देश में हो शांति और अखंडता।
विकास रथ बढ़ता रहे भारत का।।
एकता के सूत्र में बंधें हम सभी,
मंज़िल पे होंगे यही विश्वास सजाना।
सभी धर्म एक ही बात बतायें।
सृजन के नवल पुष्प विकसायें।
मानवता को आदर्श मानकर,
भारत-उपवन को महकायें।।
हम भारतीय सब मिल एक बने।
दीपक से जल दीप अनेक बनें।
हो जग में देश का गौरव-गान,
ऐसे नेक कर्मो से ही महान बनें।।

— आसिया फ़ारूक़ी 

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र