कविता

हमने अपने-पराये देखे

हमने अपने-पराये देखे
ख्वाब बड़े-बड़े सुहाने देखे

गम का सागर देखा
खुशियों का पिटारा देखा

धूप-छाँव का खेल निराला देखा
अपनों का अपनों पर सितम भी देखा

हमने अपने-पराये देखे
ख्वाब बड़े-बड़े सुहाने देखे

चाहने वालों को भी नफरत करते देखा
हमने जमाने को पल-पल रंग बदलते देखा

निराशाओं में आशा को पलते देखा
हमने सूखे चेहरों को हंसते-मुस्काते देखा

हमने अपने-पराये देखे
ख्वाब बड़े-बड़े सुहाने देखे

सुविधाओं को घुट-घुट मरते देखा
असुविधाओं को पलते-बढ़ते देखा

हमने जग को नजदीक से देखा
संसार को संसार की नजर से देखा |

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111