लघुकथा

सहाब कौन?

सहाब,दस रुपए दे दो।
क्या करेंगा, दस रुपए का?
सहाब,ने गरम चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
सहाब, मैं गरम चाय पी लूँगा।
दस रुपए क्यों चाहिए, चाय पिला देता हूँ?
सहाब,कहते-कहते, वह चुप हो गया।
सहाब ने चाय वाले से कहा,इसे भी एक कप चाय दे दो।
चाय वाले ने हाँ, में सिर हिलाया और चाय बनाने लगा।
सहाब को अपना पुराना नौकर आता दिखाई दिया।
अरे,रामू इधर कैसे?
सहाब अब यही काम करता हूँ।
बहुत बढ़िया,जमे रहो।
जी,सहाब बस आप लोगों की दया बनी रहे।
अरे हम तो पैदा हुए हैं, दया करने के लिए।
जब भी कोई जरूरत हो,बेझिझक कह देना।
हजार,दो हजार की जरूरत हो तो।
चाय पीता हुआ,भिखारी ये सब बड़े गौर से सुन रहा था।
उसने सोचा, सहाब बड़ा दिलवाला।
क्यों ना मैं भी कुछ माँग लू?
वह तुरंत उठा,माई बाप,मुझ पर भी दया करें।
दस-बीस रुपए,मेरी झोली में डाल दे।
आपका बड़ा भला होगा।
साहब ने आव देखा,ना ताव।
लगे उसे गालियाँ देने और वहाँ से चल पड़े।
चाय वाले से बोले अपनी चाय के पैसे यहीं देगा।
रामू,सहाब को जाते हुए देख रहा था।
उसे भिखारी पर दया आ गई और उसने उसे रुपए दिए।
बस इतना पूछा, बीस रुपए किसलिए चाहिए।
सामने मेरे दो बच्चें भी चाय के लिए—।
वह आगे कुछ भी ना बोल सका।
रामू,रूपए देकर चला गया।
भिखारी अभी तक यहीं सोच रहा था कि साहब कौन हैं?

राकेश कुमार तगाला

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