लघुकथा

कहानी घर घर की

हेलो माँ ! कैसी हो ?
ठीक हूं बेटा! तुम कैसी हो?
बस!! अच्छी हूं माँ
क्यों बेटा! आज आवाज़ तुम्हारी बहुत उदास सी लग रही है ?
कुछ नहीं मां ! बस आप सुनाओ
बेटा! जब से तुम शादी करके गई हो और जबसे तुम्हारी भाभी आई है तब से अपना घर अपना नही लगता । आजकल तो तुम्हें पता ही है बहुओं का ही राज चलता है। अच्छा यह सब छोड़ो, तुम बताओ तुम कब आ रही हो ?
मैं कैसे बताऊं ? आपको भी तो पता है यहां मेरी ननद की चलती है। वह महारानी बताएगी कब आ रही है तब जाकर उस हिसाब से मुझे छुट्टी मिलेगी
हां बेटा! कैसी तुम्हारी सास और ननद है जिनको इतनी अच्छी बहू और भाभी मिली है तो उसकी कदर नहीं । और यहां देखो !!
सही कह रही हो माँ ! भाभी को कितनी अच्छी सास और ननद मिली है मगर उन्हें कदर नहीं। उन्हें मिलती मेरी सास और ननद जैसी तो पता चलता
हां बेटा! सही कह रही हो मगर, अब तुम अपनी ननद से पूछ कर यह बताओ कि वह कब आ रही है और उसके बाद तुम कब आओगी! तब तो मैं तुम्हारी भाभी को भी मायजे जाने की छुट्टी दूं। वह भी रोज सर खा रही है मायके जाऊं… मायके जाऊं …

वही दूसरे कमरे में
देख लिया माँ ! यहां तो सारी मेरी ननद की चलती है। तुम मुझसे पूछ रही हो कब आओगी!! कब आओगी ? अब वह महारानी बताएं वह कब आएगी तब तो जाकर मेरी सास मुझे छुट्टी देगी मायके जाने के लिए । यहां का हाल देखो! और वहां भाभी को अपनी सास और ननद की कदर ही नहीं !! मिलती ऐसी सास और ननद तो पता चलता …
हां ..सही कह रही हो बेटा ..

— प्रिया वच्छानी

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]