इतिहास

आज राष्ट्रीय बालिका दिवस हैं।

चौराहे पर लाल बत्ती देख मैं रुक जाता हू। तभी मैली और फटी साडी में लिपटी एक औरत दो बच्चों के साथ भीख मांगती हुए मेरी तरफ आती है। उसकी गोद में कुछ महीनो का एक बच्चा है और उसका हाथ पकड कर एक छोटी सी लड़की, याचिका भरी दृष्टि से मेरी तरफ देखते है। इतने में हरी बत्ती हो जाती है और मैं आगे बढ़ जाता हूँ, पर सारे रास्ते मुझे ऐसे लगता है जैसे वह बच्ची मुझसे पूछ रही है , मेरा कसूर क्या है जो मैं और बच्चियों की तरह खेल नहीं सकती, स्कूल नहीं जा सकती ? मैं भूखी क्यों हूँ ? मेरा शोषण क्यों होता है ? लड़को के बराबर मुझे समाज में स्थान क्यों नहीं मिलता ? मुझे गर्भ में क्यों मारा जाता है ?

उस बच्ची की तरह देश में लाखों कन्याओं को गरीबी के कारण न तो भर पेट खाना मिलता है, न उसे लड़को के बराबर शिक्षा दी जाती है और न ही उन्हें समाज से कोई अधिकार मिलता हैं। यहाँ तक की पुत्र की चाह में उसे गर्भ में ही मारा जाता हैं। बड़ी हो जाने पर उसे वैश्यावृति में धकेल दिया जाता है। अगर मैं कहु की ऐसी बच्चियों का हर स्तर पर तिरस्कार और शोषण होता है , तो ये अतिश्योक्ति न होगी। यह कैसी सृष्टि की रचना है की हमारे देश में एक तरफ बालिकाओं को कजंक के रूप में पूजा जाता है तो दूसरी तरफ उसका शोषण होता है ?

हमारी सरकार ने बालिकाओं को शिक्षा, सेहत, सुरक्षा , पोषण और मौलिक अधिकार के लिए कई पहल किये है और कई कानून बनाये है जिनसे उन्हें समाज में लड़कों के सामन हर क्षेत्र में बराबरी मिले और उनको शोषण से बचाया जा सके।

बालिकाओं के कल्याण के लिए 2009 में महिला और बाल कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय बालिका दिवस पर आज के दिन समाज में जाग्रतुकता फैलाने हेतु पहल शुरू की ताकि उनको समाज में उनके अधिकार मिले।

-डॉक्टर अश्वनी कुमार मल्होत्रा

डॉ. अश्वनी कुमार मल्होत्रा

मेरी आयु 66 वर्ष है । मैंने 1980 में रांची यूनीवर्सिटी से एमबीबीएस किया। एक साल की नौकरी के बाद मैंने कुछ निजी अस्पतालों में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम किया। 1983 में मैंने पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज में बतौर मेडिकल ऑफिसर ज्वाइन किया और 2012 में सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद से रिटायर हुआ। रिटायरमेंट के बाद मैनें लुधियाना के ओसवाल अस्पताल में और बाद में एक वृद्धाश्रम में काम किया। मैं विभिन्न प्रकाशनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी में लेख लिख रहा हूं, जैसे द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदुस्तान टाइम्स, डेली पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया, वॉवन'स एरा ,अलाइव और दैनिक जागरण। मेरे अन्य शौक हैं पढ़ना, संगीत, पर्यटन और डाक टिकट तथा सिक्के और नोटों का संग्रह । अब मैं एक सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और लुधियाना में अपनी पत्नी के साथ रह रहा हूं। हमारी दो बेटियों की शादी हो चुकी है।

2 thoughts on “आज राष्ट्रीय बालिका दिवस हैं।

  • डॉ अश्वनी कुमार मल्होत्रा

    आदरनीय रविंदर जी . समाज में भीख माँगना आज कल कई गैंग के द्वारा एक व्यवसाय बन गया है। पहले बच्चों का अपहरण करते है, फिर उन्हें डरा धमका के, कई बार हाथ पाँव तोड़कर भीख मंगवाया जाता ह। आप को मेरा लेख पसंद आया उसके लिए धन्यवाद।

  • रविन्दर सूदन

    आदरणीय डाक्टर साहब, सादर नमन, आपके लेख से आपके दिल में इन बेसहारा किस्मत की मारी कन्याओं के प्रति हमदर्दी देखकर बहुत ख़ुशी हुई। ऐसे ही भिखारियों के बच्चे देखकर मेरे मन भी यही प्रश्न उठते हैं। मैनें कई बार नंगे पैर गरीब बच्चों को जूते की दूकान पर ले जाकर उन्हें जूते पहनाये। अभी हाल में एक लगभग दस साल की बच्ची के साथ लगभग 6 बच्चे थे। जब उन्हें दूकान पर ले गया तो दुकानदार महिला ने कहा भाई साहब कल ही किसी सज्जन ने इन्हें जूते दिलवाये, आज यह फिर नंगे पैर हैं, इन्हें कितनी बार भी दिलवाओ यह ऐसे ही रहेंगें। मैनें उस बच्ची से पूछा ऐसा क्यों करती हो ? कहने लगी अगर नए जूते पहनेंगे तो कोई भीख नहीं देगा।

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