लघुकथा

आज का यक्ष प्रश्न

आज यक्ष का उसी सरोवर में एकाधिकार है जो द्वापर युग मे था लेकिन वह बहुत बुझा हुआ सा पड़ा है किनारे स्थित पेड़ पर।  भगवान भी समझ नहीं पा रहे थे कि अब यक्ष अपनी शक्तियों का प्रदर्शन क्यों नहीं करता है?
जब भगवान खुद को रोक न सके तब शंका निवारण हेतु यक्ष से पूछ बैठे,” आज कल आप इतने उदासीन क्यों है, क्या कलयुग में कोई भी ऐसा मानुष नहीं बचा जो आपके प्रश्नों का उत्तर दे सके व खुद को ज्ञानी व धर्मात्मा सिद्ध कर सके?”
दुःखी स्वर में यक्ष बोला ,”भगवान आज  मनुष्य बचा ही कहाँ है, ज्ञानी व धर्मात्मा की बात उससे ऊपर है।”
“ऐसा कैसे कह सकते हो तुम? तुममें आठ कलाएं है और मनुष्य में छह, वह बुद्धि विवेक में केवल थोड़ा-बहुत पीछे है तुमसे।”
“भगवान वे कलाएं मनुष्य ने खो दी है अब वह जड़ की तरह एक कला वाला होता जा रहा है।”
 “यह कैसे कह सकते हो तुम?”
“यदि उसमें जड़ता नहीं होती तो क्या वह नब्बे साल की औरत या दो साल की बच्ची से बलात्कार कर सकता था?”
 — कुसुम पारीक

कुसुम पारीक

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