कविता

कविता

ए मौत तेरा डर नहीं
गम है इस बात का
मरते ही चंद घंटों में
जला दी जाऊँगी मैं
और मेरे साथ जल जाएंगे
वो सारे सपने
जो कभी देखे थे
रात रात भर जागकर
चार आंखों ने संग
वो सारी यादें
जिन्हें सहेज रखा है
मन एक कोने में
जो ले आती हैं होंठो पर
नम सी हँसी
वो सारे अहसास जो जागे थे
उनके एक नज़र देखने भर से
वो पहली छुअन की सरसराहट
जो दौड़ रही है अब तक
मेरी इन रंगों में
ए मौत मुझे तेरा डर नहीं
डर है तो बस
उनसे बिछड़ने का…

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]