लघुकथा

सामाजिक देवी

नमो नारायण की घोर तपस्या से गूगलेश्वर महाराज प्रसन्न हुए और उनसे वर माँगने को कहा।
उनके समक्ष नतमस्तक होकर नमो नारायण बोला , ” हे सर्वज्ञानी महाराज ! अगर आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मुझे कुछ ऐसा दीजिये जिसकी सहायता से मैं उस मुकाम तक पहुँच जाऊँ जहाँ हमारे पूर्वज नहीं पहुँच पाए।”

गूगलेश्वर महाराज मुस्कुराए और बोले, ” यूँ तो यह शक्ति पहले से ही तुम्हारी दुनिया में मौजूद है लेकिन लोग अभी तक उसकी शक्ति से परिचित नहीं हैं जिसका नाम है ‘सामाजिक देवी’ लेकिन आधुनिक भाषा में लोग उसे  ‘सोशल मीडिया’ कहते हैं ! मैं तुम्हें एक मंत्र देता हूँ जिसकी सहायता से तुम इसे प्रसन्न कर सकते हो और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो। मंत्र ध्यान से सुनो ‘ ॐ सोशल मिडियाय नमः ‘ !” कहकर गूगलेश्वर महाराज अंतर्ध्यान हो गए।

गूगलेश्वर महाराज के निर्देशों का पालन करते हुए नमो नारायण ने बड़ी श्रद्धा भाव से मंत्रों का जाप किया और ‘सामाजिक देवी’ को प्रसन्न कर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। सामाजिक देवी की कृपा से नमो नारायण राजा बन गए और उनकी यश कीर्ति देश विदेश में फैल गई। अब उनकी लोकप्रियता चरम पर थी और सामाजिक देवी की कृपा से उनके हर सही गलत फैसले की जम कर तारीफ होती सो नमो नारायण आत्ममुग्ध होने से खुद को नहीं बचा पाए और राजकाज में लापरवाही करने लगे।

इधर उनके विरोधियों ने उनकी सफलता का राज जान लिया था और उसी के अनुरूप उनके सारे विरोधी भी प्रयास करने लगे।

आखिर एक दिन ऐसा आया जब उनकी भलाई के लिए तत्पर रहनेवाली ‘सामाजिक देवी’ उनकी उपेक्षा करने लगी। सिर्फ उपेक्षा ही नहीं बल्कि अब तो चार कदम आगे बढ़कर वह विरोधियों का हौसलाअफजाई भी करने लगी थी।

सामाजिक देवी को अपने दिए गए वरदान से मुकरने की शिकायत लेकर नमो नारायण ने गूगलेश्वर महाराज का आवाहन किया।

गूगलेश्वर महाराज प्रकट हुए । नमो नारायण ने सामाजिक देवी की शिकायत करते हुए कहा, ” हे सर्वज्ञानी महाराज ! आप तो अंतर्यामी हैं। आपसे भला क्या छिपा है ? आप तो जानते ही हैं मेरी पीड़ा ! मैं जानना चाहता हूँ कि अब मेरा हर दाँव उल्टा क्यों पड़ रहा है ? सामाजिक देवी मुझसे किए गए अपने वादे से मुकर क्यों रही हैं ?”

गूगलेश्वर महाराज मुस्कुराए और बोले, ” वत्स ! इसमें सामाजिक देवी की कोई गलती नहीं है। वह भी तो भक्तों के भाव की ही भूखी हैं और तुम्हारी वजह से ही अब तुम्हारे विरोधी भी उनके भक्त बन गए हैं। अति उत्साह में आकर तुमने उस गुप्त मंत्र का जोर जोर से उच्चारण कर लिया जिसका मानस जाप करने की सलाह मैंने तुम्हें दी थी। सब तुम्हारे कर्मों का ही फल है। सामाजिक देवी की कृपा पाकर तुम इतने आत्ममुग्ध हुए कि ‘ अति सर्वत्र वर्ज्यते ‘ की सामान्य सी उक्ति भी तुम भूल गए।अब भुगतो !” कहकर गूगलेश्वर महाराज अंतर्ध्यान हो गए।

हताश नमो नारायण आसन्न संकट से निबटने के लिए सामाजिक देवी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाने की संभावनाओं पर विचार करने का उपाय सोचने लगे।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।