यात्रा वृत्तान्त

मेरी वृंदावन यात्रा

वृंदावन का नाम आते ही मन मस्तिष्क पर श्री कृष्ण की मनमोहक झांकियां सज जाती है …..वह नटखट कृष्ण , गोपियों से माखन छीनने वाला कृष्ण ,अपने सखाओं की टोली में रहने वाला कृष्ण ,बंशी बजाने वाला कृष्ण, गायों को चराने वाला कृष्ण कई रूपों में श्री कृष्ण की छवि आंखों के सामने आ जाती है । और आत्मा उस परमात्मा से मिलने को व्याकुल हो जाती है। पर मुझे लगता है कृष्ण तो आज भी वृंदावन में उन बंदरों में मौजूद हैं जो भक्तों के चश्मे ,पर्स और मोबाइल देखते ही छीन कर ले जाते हैं ,ठीक वैसे ही जैसे गोपियों से श्री कृष्ण माखन छीन लेते थे ।
बात 2017 की है जब मैं वृंदावन गई थी । मैं चश्मा लगाती हूं और जब मैं बांके बिहारी जी के मंदिर गई तो मुझे देखकर सब बोलने लगे की ” दीदी चश्मा निकाल दो ,बंदर ले जाएंगे ”  बहुत भीड़ थी और मैंने देखा ज्यादातर लोगों ने चश्मा नहीं लगा रखा था । पर मेरी समस्या ये है कि में बिना चश्मा के चल भी नहीं पाती और मेरे पास एक ही चश्मा था । वह भी बिना फ्रेम वाला । मुझे पता था अगर थोड़ा सा भी झटका लगा तो चश्मा टूट जाएगा पर निकलेगा नहीं । में कभी चश्मा लगा रही थी तो कभी निकाल रही थी ऐसे करके ही बांके बिहारी जी की उस पतली और लम्बी गली में चल रही थी । मेरे सामने ही दो तीन लोगों के मोबाइल और चश्में बंदरों ने छीन लिए थे और फ्रूटी देने पर ही वापस दिए थे ।
वो नटखट बन्दर मुझे बहुत प्यारे लग रहे थे और मुझे उनसे डर भी लग रहा था, की कहीं इनकी नजर मेरे चश्में पर ना पड़ जाएं …खैर हमने बांके बिहारी जी  मंदिर के दर्शन बहुत अच्छे से कर लिए और पूरे दिन वृंदावन के अन्य मंदिरों में भगवान कृष्ण की मनमोहक झांकियों के दर्शन करते रहे । हर मंदिर में बंदरों का जमघट और आंतक था । वे चश्मे ,मोबाइल और पर्स यात्रियों से छीन लेते और फ्रूटी पिलाने पर ही वापस देते थे । इन तीन चीजों पर ही उनकी नजर रहती थी । मानो वे जानते हो की आज के जमाने में इंसान इन तीन चीजों के बगैर नहीं रह सकता । पर कुछ भी हो मुझे तो उनमें साक्षात नटखट कृष्ण की छवि ही लगी । मुझे उस वक्त यह महसूस हो रहा है की  कैसे ग्वालिनें अपनी दूध मक्खन से भरी मटकी को श्रीकृष्ण से छिपा कर ले जाती होगी उनके लिए यह काम कितना चुनौतीपूर्ण  होता होगा ? जैसे मेरा चश्मे के साथ बन्दरो से नजर बचाते हुए घूमना । में पहले दिन तो सही सलामत घूम ली दूसरे दिन हम लोग यमुना स्नान और पूजा अर्चना किये उसके बाद साक्षी गोपाल मंदिर गए फिर वहां से हम निधिवन गए जहां आज भी श्री कृष्ण रात को रासलीला करने आते हैं ऐसी मान्यता लोगों में है ।फिर हमलोग इस्कॉन मंदिर गए जहां विदेशी भी श्री कृष्ण की भक्ति में लीन होकर नाच रहे थे और साथ मे गीताजी का प्रचार भी कर रहे थे । वहां पर कई विदेशी औरतों ने तो साड़ी पहन रखी थी ।उन लोगों को देख कर अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व हो आया ।
शाम को हम लोग प्रेम मंदिर गये जो सुंदरता की पराकाष्ठा को छूता भव्यता के शिखर पर पहुंचा श्री कृष्ण और राधा जी की प्रेम लीला को दर्शाता बड़ा ही अद्भुत, अलौकिक मंदिर लगा । मंदिर की नकशदारी तो देखते ही भक्तों के मन लुभा लेती है ।
 फिर मदन गोपाल मंदिर के दर्शन किए बीच-बीच में बेटा और पति मुझे बार-बार टोक भी रहे थे कि “चश्मा उतार दो” पर तब तक मुझे थोड़ा अहंकार हो गया था कि मैं तो सच्ची और बड़ी भक्त हूँ । तभी तो बंदर मुझे कुछ नहीं कर रहें हैं। पर भगवान किसी का अहं टिकने नही देते ।
में ऑटो में बैठी यह सब सोच ही रही थी की ऑटो के ऊपर से बन्दर ने बड़े आराम से चश्मा निकाला और पास की दीवार में चढ़ गया ।यह सब इतना अचानक हुआ कि मुझे इसका आभास भी नहीं हुआ ।
मैं जोर से चिल्लाने लगी “बंदर मेरा चश्मा ले गया”तभी एक लड़का दौड़ता हुआ आया और बोला “बहनजी !100 रुपया देना पड़ेगा अभी ला देता हूं ” ठीक है! जल्दी लाओ, नही तो मेरा चश्मा बन्दर तोड़ देगा” कहते हुए मैने उसे रुपये दिए । उस लड़के ने पास की दुकान से 20 रुपया की फ्रूटी खरीदी और बन्दर की तरफ उछाल दी बदले में बन्दर ने भी चश्मा उछाल दिया उस लड़के ने कैच किया और मुझे लाकर देते हुए बोला “यह लीजिये आपका  चश्मा सही सलामत है। ” । मैने हँसते हुए उस लड़के को कहा ” तुम लड़कों का इन बंदरों के साथ कोई सेटिंग्स है क्या ?” ये समान छीनते है और आप लोग इनको फ्रूटी पिलाते हो तो ये समान वापस करते हैं । इनको फ्रूटी पीने को मिल जाती है, और आप लोगों को पैसा । क्या बहनजी !आप भी क्या बातें कर रहें हो उस लड़के ने भी हंसते हुए कहा और चला गया ।
अब तक मुझे यह पक्का भरोशा होने लगा कि इन बंदरों के रूप में श्री कृष्ण ही मानो भक्तों को मोबाईल, चश्मा और पर्स के माध्यम से संदेश दे रहे हैं । “कि अगर श्री कृष्ण को देखना है तो चश्मा हटाकर मन की आंखों से अपने स्वयं के भीतर देखो , अगर प्रभु को पाना है तो मन मे दया और प्रेम रखो ।
पर्स में भरे रुपयों से भगवान को थोड़े ही खरीदे जा सकते हैं ।उन्हें पाने के लिए तो दान -धर्म को अपनाना होगा ।
मोबाइल में तस्वीर खिंचने से थोड़े ही कल्याण होगा । कल्याण तो तभी होगा जब मन के कैमरे से भगवान की मधुर छवि को खींचकर ह्रदय में स्थित कर लेंगें ।
श्री कृष्ण तो प्रेम के भूखे है ।उन्हें पाने के लिए तो हमे भौतिक वस्तुओं का त्याग कर बृज वासियों की तरफ सच्चे और सरल इंसान बनना होगा ।
 मेरी बृज यात्रा बहुत उत्साह उमंग से भरी हुई रही और इस दौरान मैने श्री कृष्ण और राधा रानी से जुड़े कई प्रसंगों की गहराई को समझा ।
— सीता देवी राठी

सीता देवी राठी

कूचबिहार पश्चिम बंगाल (असम मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित लेखिका)