इतिहास

गौरवशाली भारतीय इतिहास का जाज्वल्य नाम-सम्राट पृथ्वीराज चौहान

सम्राट पृथ्वीराज चौहान का नाम भारतीय इतिहास में प्रमुख शासकों में अग्रणी के रूप में लिया जाता हैं।ऐसे पराक्रमी शासक की जयंती ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वादशी को(7 जून) हैं।उनका जीवनकाल लगभग 1166-1192 ईस्वी तक रहा।उनका युग 900 वर्षों से भी अधिक समय पहले बीत चुका हैं, किन्तु उनके नाम की अमरता आज भी जीवित हैं।सम्राट पृथ्वीराज चौहान उस समय राजसिंहासन पर बैठा,जिस आयु में बालक छोटे-छोटे खिलौनों से खेलता हैं।मात्र 11 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज चौहान तृतीय पिता राजा सोमेश्वर के असामयिक मृत्यु के कारण अजमेर की राजगद्दी पर बैठा।उनकी माता कर्पूरी देवी ने बालक पृथ्वीराज के साथ चौहान राजवंश की राजधानी अजमेर के शासन की बागडोर संभाली।उनकी माता चेदि के कलचुरी वँश की थी।उनके मंत्री कैमास और भुवनेकमल्ल के सहयोग से शासन व्यवस्था सुचारू रूप से चली।
सर्वप्रथम पृथ्वीराज तृतीय ने चौहान साम्राज्य के प्रबल दावेदार नागार्जुन को गुड़गांव में परास्त किया ।
तत्पश्चात उन्होंने अलवर,मथुरा के क्षेत्रों के भंडानकों का दमन किया।1182 ईस्वी में पृथ्वीराज तृतीय ने महोबा के चन्देलों पर आक्रमण किया।वहाँ का शासक परमर्दीदेव थे एवं उनके वीर सेनानायक आल्हा और ऊदल थे।युद्ध मे दोनों महासेनानायक युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए।उनकी शौर्यगाथा की अमिट पहचान जनमानस के ह्रदय पटल पर अंकित हैं।चौहान साम्राज्य की सीमा गुजरात के चालुक्यों से भी मिलती थी।अतः दोनों के मध्य 1184 ई, में संघर्ष हुआ,एवं अनिर्णायक रहा।अंत में दोनों के मध्य संधि हो गयी।12 वीं शताब्दी में चौहान और गहड़वाल राजवंश सबसे अधिक शक्तिशाली थे।पृथ्वीराज तृतीय के समकालीन कन्नौज पर गहड़वाल वँश का महान प्रतापी शासक जयचन्द्र था।संयोगिता की प्रेमगाथा की ऐतिहासिकता संदेहास्पद हैं।चन्द्रबरदाई द्वारा कृत पृथ्वीराज रासो में इसका पूरा वर्णन मिलता हैं।स्वयंवर से संयोगिता का अपहरण पृथ्वीराज चौहान द्वारा होना कई इतिहासकारों ने कल्पना सिद्ध किया,किन्तु यह निर्विवाद रूप से सत्य हैं कि पृथ्वीराज तृतीय और जयचन्द्र में गहन शत्रुता अवश्य थी।पृथ्वीराज रासो में दोनों के मध्य भयंकर युद्ध का भी वर्णन मिलता हैं, जिसमे पृथ्वीराज के अधीन आमेर के महापराक्रमी शासक पजवनराय कछवाहा वीरगति को प्राप्त हुए थे।
भारतवर्ष में 8वीं शताब्दी से मुस्लिम शासकों के आक्रमण शुरू हो गये थे।गजनी का शासक शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज तृतीय के समकालीन था।वह 1178 ईस्वी में गुजरात के शासक भीमदेव सौलंकी के हाथों बुरी तरह परास्त हो चुका था।1186 ईस्वी तक गौरी ने संपूर्ण पंजाब पर अपना आधिपत्य जमा चुका था।1189 ईस्वी में पृथ्वीराज के अधीन भटिण्डा पर गौरी के अधिकार करने जाने से चौहान साम्राज्य पर खतरा मंडराने लगा।अतः पृथ्वीराज तृतीय एवं मोहमद गौरी में भटिण्डा के समीप तराइन के मैदान में युगपरिवर्तक युद्ध हुआ।राजपूतों के भयंकर हमले से गौरी की सेना पीछे खिसकने लगी।स्वयं मुहम्मद गौरी युद्धस्थल पर आया और लड़ाई लड़ी,किन्तु बुरी तरह घायल हुआ।एक स्वामिभक्त खिलजी घुड़सवार ने गौरी को युद्धस्थल से बाहर निकालकर उसकी प्राणरक्षा की।विजयोपरांत पृथ्वीराज चौहान ने भागते शत्रुओं का पीछा न किया जाना भयंकर ऐतिहासिक भूल की।
मुहम्मद गौरी इस अपमानजनक पराजय को न भूल सका।वह पुनः युद्ध तैयारी में जुट गया।वह पुनः आतताई तराइन में आ डटा।1192 ईस्वी में पुनः तराइन में मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान में युद्ध हुआ,किन्तु छल प्रपंचों से गौरी युद्ध मे विजयी हुआ।मुस्लिम इतिहासकार मिनहाज और फरिश्ता ने लिखा है कि पृथ्वीराज चौहान पराजय के पश्चात सिरसा के निकट उसे बन्दी बनाकर मार दिया गया।अन्य इतिहासकारों ने अन्य राय व्यक्त की हैं,किन्तु पृथ्वीराज चौहान का अंत भारतीय इतिहास का परिवर्तन मोड़ लेकर आया,जहाँ हिन्दू साम्राज्य का अंत होकर मुस्लिम साम्राज्य का प्रादुर्भाव हुआ।मात्र 26-27 वर्षों के जीवन के अल्प समय की वीरगाथा पृथ्वीराज चौहान को अजर अमर करती हैं।अतः ऐसी आशा हैं कि भारत ऐसे महान पराक्रमी योद्धा को उनकी जयंती में अवश्य स्मरण करें।

— मनु प्रताप सिंह चींचडोली

मनु प्रताप सिंह चींचडौली

निवास-जयपुर,राजस्थान पिन कोड 302034 शिक्षा-बीएससी नर्सिंग तृतीय वर्ष