ग़ज़ल
वही है बारिश, घटा वही है
महक वही है, हवा वही है
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खिला खिला सा है आज गुलशन
गुलों पे छाया नशा वही है
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घुली फ़ज़ाओं में जिसकी रंगत
जो रंग मुझपर गिरा वही है
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हुई है पूरी दुआएं शायद
जो दिल नें चाहा मिला वही है
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रची हुई है मुहब्बतों की
हथेलियों पर हिना वही है
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चले भी आना कभी तो मिलने
हमारा अब तक पता वही है
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“रमा” जो शामिल है धड़कनों में
यकीन मानो सगा वही है