कानून नहीं समाज जागरण से हो जनसंख्या नियंत्रण
भारतवर्ष की लगभग ६५% जनसंख्या युवाओं की है। हमारे देश में कई प्रतिभाशाली और मेहनतकश युवा हैं जिन्होंने देश को गर्व की अनुभूति कराई है। भारत में युवा पीढ़ी उत्साहित और नई चीजें सीखने के लिए उत्सुक हैं। चाहे वह विज्ञान, प्रौद्योगिकी या खेल का क्षेत्र हो हमारे देश के युवा हर क्षेत्र में श्रेष्ठ हैं। जनसँख्या के आंकड़ो के अनुसार भारत में ६० करोड़ १३ से ३५ वर्ष की आयु के युवा है। इन आंकड़ो से स्पष्ट है कि भारत में कामकाजी व्यक्तियों कि संख्या सबसे अधिक है। विशाल भारत के समग्र समावेशी विकास के लिए कामकाजी व्यक्तियों की विशाल जनसँख्या की आवश्यकता होगी। अतः भारत को एक युवा राष्ट्र कहा जा सकता है। इसलिए यह हमारे लिए गौरव की बात है कि भारत युवाओं का देश है। और इसलिए कहीं हमारा देश चीन की तरह बूढ़ों का देश न हो जाये इसको भी ध्यान रखना होगा। वर्तमान समय मे बढ़ती जनसंख्या को लेकर समाज, सरकार व भिन्न-भिन्न संस्थाओं, स्थानों पर विचार, विमर्श हो रहे हैं यह होना भी चाहिए। जनसंख्या में वृद्धि से समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। किन्तु भारत मे बढ़ती जनसंख्या के कारणों पर वृहद रूप से अध्ययन करने की आवश्यकता है। भारत मे बढ़ती हुई जनसंख्या का अध्ययन करने से ध्यान में आएगा कि विगत लगभग ५० सालों में जो जनसँख्या बढ़ी हैं उसके आधर पर हम कहेंगे कि जनसंख्या का सामाजिक असन्तुलन हुआ है। किसी एक विशेष समुदाय यानी मुस्लिम पंथ के लोगों की जनसंख्या औसत से कहीं अधिक बढ़ी है। वहीं दूसरी ओर हिंदू जनसँख्या की बात करें तो इनकी जनसंख्या कम हुई है। इस लिए सब प्रकार से अध्ययन करने के बाद कहाँ जनसंख्या में वृद्धि हुई है पहले वहां जागरूकता कर इसे रोकने के प्रयास करने चाहिए। आगे आने वाले ५० वर्षों को ध्यान में रखकर जनसंख्या नियंत्रण का कार्य करना चाहिए। स्वाभाविक है कि जनसँख्या बढ़ने पर बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं लेनिक जनसंख्या काम करने वाले हांथ भी देती है।
जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने से नही बल्कि जागरूक होने से किसी भी देश का सर्वांगीण विकास हो सकता है। जब उस देश का समाज भी जागरूक होगा। तो देश तरक्की करता है। हाँलांकि देश में बढ़ती जनसंख्या बेरोजगारी को जन्म देती है। जहां बेरोजगारी बढ़ेगी वहां गरीबी, भूखमरी, प्रदूषण और अपराध जैसी समस्याएं उत्पन्न होना स्वभाविक है।
जनसंख्या एक जगह पर रहने वाले लोगों की संख्या को दर्शाने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आबादी का घनत्व भिन्न-भिन्न कारणों से अलग-अलग होता है। धरती पर जनसंख्या असमान रूप से वितरित है। ऐसा सिर्फ मानव आबादी के मामले में नहीं है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि दर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है, इसका प्रमुख कारण परिवार नियोजन के बारे में लोगों में जागरूकता का अभाव है। यदि नियोजन द्वारा बच्चों को जन्म दिया जाए तो यह जनसंख्या नियंत्रण का सबसे कारगर साधन हो सकता है। जनसंख्या के बढ़ने से देश, समाज, परिवार, पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या बढ़ने के कारण भरण पोषण की समस्या, आवास की समस्या, बेरोजगारी, भुखमरी तथा अकाल, कुपोषण , संक्रामक रोग तथा महामारी, अशिक्षितों की बढ़ती जनसंख्या, नगरों पर जनसंख्या का निरन्तर बढ़ता दबाव तथा गन्दी बस्तियों का विकास, संसाधनों पर अधिक बोझ, कृषि क्षेत्र में कमी, वनों का निरन्तर विनाश, पर्यावरण प्रदूषण, वन्य जीवन को खतरा, शक्ति के संसाधनों की कमी ,राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध ,सामाजिक बुराइयाँ तथा भ्रष्टाचार, आदि जैसे बहुत सारी मुश्किलें हम सब के सामने उपस्थित हो जाती हैं। इसके लिए जागरूकता व महिलाओं में विशेष रूप से जागरूकता व शिक्षा का के प्रयास होने चाहिए। शिक्षा न केवल महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये बल्कि प्रजनन क्षमता में गिरावट हेतु भी बहुत महत्त्वपूर्ण। बेहतर शिक्षित महिला परिवार नियोजन के संबंध में सही निर्णय ले सकेगी। जब तक महिलाएँ कार्यबल का हिस्सा नहीं होंगी कोई भी समाज प्रजनन दर में कमी नहीं ला सकता। ऐसे में प्रभावी नीतियाँ बनाकर कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि की जानी चाहिये। जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे को न केवल राष्ट्रीय दृष्टिकोण से बल्कि राज्य के दृष्टिकोण से भी देखना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विभिन्न राज्यों को जनसंख्या वृद्धि को रोकने हेतु अलग-अलग कदम उठाने हेतु प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इन सब प्रयासों से जनसंसाधन के गुणात्मक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा और सामाजिक परिवर्तन की दिशा सुनिश्चित हो सकेगी। सरकार सहित राजनेताओं, नीति-निर्मताओं और आम नागरिकों सभी को साथ मिलकर एक ठोस जनसंख्या नीति का निर्माण करना होगा ताकि देश की आर्थिक विकास दर बढ़ती आबादी के साथ तालमेल स्थापित कर सके।
इन सब प्रकार की बातों को ध्यान में रखकर परिवार नियोजन को आगे बढाना चाहिए। वहीं दूसरी ओर यदि हम देखेंगे तो पाएंगे कि आज शहरों में हिन्दू परिवारों ने जनसंख्या पर इतना अधिक नियंत्रण कर लिया है कि उनकी परिवार व्यवस्था ही खत्म हो रही है। भारतीय परिवार व्यवस्था में यदि परिवार नही होगा तो संस्कार व संस्कृति कैसे बचेगी। चाचा, चाची, मौसी, बुआ, नाती जैसे शब्द ही खत्म हो जाएंगे इसलिए जनसंख्या का भौगोलिक, सामाजिक, धार्मिक आधार पर नियंत्रण करना उचित रहेगा। यह समस्या कानून से नही बल्कि जागरूक समाज से ही सम्भव है।