राजनीति

आजादी के असली मायने

कहने को तो हम सब भारतवासी आजादी का 75वाँ राष्ट्रीय पर्व मनाने जा रहे हैं। लेकिन क्या हम आज भी सही मायने में अपने आपको आजाद मानते हैं। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आजादी के इतने वर्ष बाद आज भी हमारा देश गरीबी,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार,जातिवाद,क्षेत्रवाद जैसी ना जाने कितनी समस्याओं की बेड़ियों में जकड़ा हुआ हैं। हमारे देश में दिन प्रतिदिन गरीब और अधिक गरीब होता जा रहा हैं।तो दूसरी तरफ अमीर और ज्यादा अमीर होता जा रहा हैं। देश का 90 प्रतिशत पैसा देश की आबादी के 10 प्रतिशत लोगों के पास हैं।जबकि सिर्फ 10 प्रतिशत पैसा ही देश की आबादी के 90 प्रतिशत गरीब आबादी के पास हैं। जब तक अमीर-गरीब के बीच ये असंतुलन की स्थिति रहेगी तब तक हमारा देश विकास के पथ पर आगे कैसे बढ़ सकेगा। देश में आतंकवाद की समस्या का आज तक कोई स्थायी समाधान नहीं हो सका हैं। देश लगातार हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर बंटता जा रहा हैं। राजनैतिक दल धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे हैं। देश में लगातार अशांति का वातावरण पनप रहा हैं। और हम हैं कि अपनी गुमनाम आजादी का जश्न मना रहे हैं। आज भी देश में शिक्षा का प्रसार उस स्तर का नहीं हुआ हैं। जितना होना चाहिए था। देश में साल दर साल महिलाओं और बहिन-बेटियों पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर देश की सरकारें आजादी के इतने वर्ष बाद भी कोई पुख्ता इंतजाम करने में पूरी तरह से विफल साबित हुई हैं। देश में कुछ असमाजिक प्रवृति के लोग धर्म के नाम पर जनता को आपस में लड़ाकर अराजकता का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति और सभ्यता का धीरे-धीरे हमारे व्यवहार और जीवनयापन से नाता टूटता जा रहा हैं। इसके साथ-साथ देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी धड़ल्ले से छोटी-छोटी बालिकाओं के बालविवाह किये जा रहे हैं। और विधवा विवाह के फायदे को लेकर आज भी हम अपने ग्रामीण परिवेश के लोगों को आश्वस्त करने में और उनका विश्वास जीतने में असमर्थ साबित हुए हैं। इसके अलावा देश में लिंगानुपात की मात्रा लगातार घट रही हैं। बालिकाओं को लेकर लोगों के मन की भ्रान्तियों को हम आज तक स्पष्ट नहीं कर सके हैं। बालक-बालिका एक समान सिर्फ किताबों में लिखा हुआ दिखता हैं। असल जिंद़गी में लोग आज भी बालिकाओं को बालकों के बराबर प्यार और सम्मान का हकदार नहीं मानते हैं। फिर हम आजाद किससे हुए हैं। सिर्फ अंग्रेजों के देश छोड़कर चले जाने को हम आजादी का नाम कैसे दे सकते हैं। देश के कोने-कोने में हर दिन किसी न किसी महापुरूष और शहीद की मुर्ति तोड़कर उनका अपमान किया जा रहा हैं। फिर हमारा देश किस दिशा में आगे बढ़ रहा हैं। इस बात का अंदाजा ना देश की जनता को हैं और ना देश की सरकारों को फिर भी हम कह रहे हैं कि हम आजाद भारत में निवास कर रहे हैं। असली आजादी तो देश को अभी तक मिली ही नहीं हैं। कब तक हम धर्म के नाम पर लड़ते रहेंगे। जबकि हमारे देश का संविधान तो धर्मनिरपेक्षता की बात करता हैं। फिर हम लोग धर्म के नाम पर लड़कर क्यों देश का माहौल खराब कर रहे हैं। आजादी के इतने साल बाद भी हम अपने देश को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा करने में असमर्थ रहे हैं। क्योंकि हम विज्ञान और तकनीक की बात से ज्यादा धर्म और अंधविश्वास को महत्व देते हैं। एक तरफ हमारे देश में गरीब आबादी दो वक्त की रोटी को मोहताज हो रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ सरकारों द्वारा मूर्तियाँ और स्टैच्यू बनाने पर अरबों रूपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। खेलों के लीग जैसे इवेंट के नाम पर देश की मुद्रा का फिजूल व्यय किया जा रहा हैं। फिर हम आजाद कैसे हो गए। गरीबों की भूख की चीत्कार पर आजादी का जश्न हम कैसे मना सकते हैं। हमारे देश में गंदी राजनीति हो रही हैं। हमारे देश की सरकारें नहीं चाहती हैं कि हमारे देश का नागरिक जागरूक बनें। अपना विकास करें क्योंकि उनको सिर्फ अपनी कुर्सी चाहिए। देश के विकास से उनका कोई सबंध नहीं हैं। आज देश में सरकारी नौकरियों के नाम पर भ्रष्टाचार उच्चतम स्तर पर हैं। कोई भी परीक्षा क्यों ना हो, परीक्षा होने से पहले पेपर लीक हो जाते हैं। इन सबका जिम्मेदार सिस्टम नहीं तो फिर कौन हैं। अगर रक्षक ही भक्षक बन जाएगा तो विकास और पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता की बात सोचना भी व्यर्थ हैं। लेकिन देश की आम जनता गलतफहमी में अपने आपको आजाद समझने की भूल किये जा रही हैं। कोई भी दिन ऐसा नहीं होता जब हमारे देश का कोई सैनिक देश के किसी कोने में शहीद नहीं होता हो, कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब देश के किसी अखबार में बलात्कार की घटना का जिक्र नहीं होता हो फिर ऐसी आजादी के मायने क्या हैं। जब हम अपने घर में भी अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हो। देश का कुछ हिस्सा आज भी बिजली,पानी, जैसी आम जरूरतों से भी वंचित हैं। तो फिर हम किस बात की आजादी का जश्न मना रहे हैं। हम सबको जागरूक हो कर देश के सिस्टम से पूछना होगा कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा हैं और हमारी आजादी के असली मायने क्या हैं। जब तक स्वयं अपने अधिकारों को लेकर जागरूक नहीं होंगे तब तक हम अपने आपको सही मायने में आजाद नहीं कह सकते हैं। अंत में मेरी तरफ से ह्रदय की अनंत गहराईयों से आप सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस के राष्ट्रीय पर्व की ढ़ेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं। इन्ही शब्दों के साथ मैं अपनी कलम को विराम देना चाहता हूँ।
— युवराजसिंह

युवराज सिंह

सेक्टर-H, शास्त्रीनगर, जोधपुर, राजस्थान 342003