लघुकथा

आधा गिलास पानी

मीनाक्षी अपनी एक आंटी से मिलने उनके घर गई। आंटी गिलास में पानी लेकर आईं। मीनाक्षी ने बोला == आंटी , इतनी प्यास नहीं है। इसे आधा कर दीजिए। आंटी बोली == पानी का क्या है। जितना पीना हो पी लो। यह कोई चाय थोड़े ही है जो आधा कप करो। मीनाक्षी बोली == नहीं आंटी। हमारे देश में पीने योग्य पानी बहुत कम है। वेस्ट जायेगा। फिर पानी की बचत करेंगे तो बिजली की भी बचत होगी। एक पंथ दो काज। फिल्टर हाउस की मोटर , फिर हमारे घर में ऊपर ओवरहेड टैंक में पानी चढ़ाने के लिए मोटर , आर ओ वाटर फिल्टर में बिजली , फिर पानी को ठंडा करने के लिए बॉटल में भरकर फ्रिज में रखने पर बिजली की जरूरत , इस प्रकार जो एक गिलास पानी आप मेरे लिए ले कर आई हैं , उसमे नदी से लेकर इस टेबल तक आने में चार जगह बिजली खर्च हुई है। इसीलिए मैं जितनी आवश्यकता हो उतना ही पानी लेती हूं। आंटी बोली == मीनाक्षी , तुम तो बहुत समझदारी की बात करती हो। मैं भी अब पानी की बचत किया करूंगी। बिजली तो स्वयं ही बच जायेगी। बोलो चाय लोगी अथवा नींबू पानी। मीनाक्षी मुस्कराकर बोली == आंटी, आधा कप चाय। आंटी मुस्कराकर किचन में चाय बनाने चली गईं।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी