गीत नया मैं गाता हूँ
लो, गीत नया मैं गाता हूँ
वो गीत कि जिसमें रंगत हो
लय-ताल, सुरों की संगत हो
शब्दों की सजावट हों, जैसे
उड़ते बगुलों की पंगत हो
बैठो तुम पास कल्पनाओं !
भावों की सेज सजाता हूँ
लो, गीत नया मैं गाता हूँ
निर्माण लिखा, संहार लिखा
कुछ प्रेम प्यार, श्रृंगार लिखा
वात्सल्य लिखा, कुछ हास्य लिखा
लेकिन दुख बारंबार लिखा
भर जाती गीतों की गगरी
मैं जब-जब अश्रु बहाता हूँ
लो, गीत नया मैं गाता हूँ
अब हँसना है, रो लिया बहुत
अब पाना है, खो लिया बहुत
दुक्खों की काली रातों में
अब जगना है, सो लिया बहुत
जब तक न उदय हो दिनकर, मैं
आशा का दीप जलाता हूँ
लो, गीत नया मैं गाता हूँ
कोशिश है, अब मुस्काऊंगा
अब दर्द न कोई गाऊंगा
जग के भीषण कोलाहल में
मुरली की तान सुनाऊंगा
तुम अपने मन की सुन लेना
मैं अपना हाल सुनाता हूँ
लो, गीत नया मैं गाता हूँ
— प्रवीण पारीक ‘अंशु’