कविता

कल की बात नहीं करना

कल की बात नहीं करना,
अब आगे की सुधि लीजै।
बीत गया जो कुछ भी हुआ,
अब करना है जो, कीजै।
मान मिला, अपमान मिला,
अब उस पर जोर न दीजै।
कैसे मिले मान धन अब से,
इस पर ही  बल दीजै।
सावन की हरियाली से
खुश होकर ,
पतझड़ को बिसार न दीजै।
माँ की ममता का मोल नहीं है,
उनके आंचल की छाव भी लीजै।
धूल मिले बाबुल चरणों की,
जन्म सफल कर लीजै।
आचार-विचार की गंगा में नहाकर,
समरसता का रस पीजै।
यह तन है माटी का पुतला,
इस पर ध्यान भी कीजै।
आना-जाना लगा रहेगा,
पश्चाताप तनिक न कीजै।
कर सकते हैं तो इतना कर लें,
सबको अपना लीजै।
— अनुपम चतुर्वेदी

अनुपम चतुर्वेदी

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, गजलगो व मुक्तकार,संतकबीर नगर,उ०प्र०