मुक्तक/दोहा

एक मुक्तक

सदियों की दासता को अब जाकर पहचान पाई है वो
अपने हक और अधिकार को अब कहीं जान पाई है वो
अब वो दिन दूर नहीं जब वह भी खुलकर साँस लेगी
तोड़ कर रूढ़ियों की बेड़ियाँ, अभी तो डग भर पाई है वो

— राजकुमार कांदु

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।