एक मुक्तक
सदियों की दासता को अब जाकर पहचान पाई है वो
अपने हक और अधिकार को अब कहीं जान पाई है वो
अब वो दिन दूर नहीं जब वह भी खुलकर साँस लेगी
तोड़ कर रूढ़ियों की बेड़ियाँ, अभी तो डग भर पाई है वो
— राजकुमार कांदु
सदियों की दासता को अब जाकर पहचान पाई है वो
अपने हक और अधिकार को अब कहीं जान पाई है वो
अब वो दिन दूर नहीं जब वह भी खुलकर साँस लेगी
तोड़ कर रूढ़ियों की बेड़ियाँ, अभी तो डग भर पाई है वो
— राजकुमार कांदु