कुण्डली/छंद

घनाक्षरी

प्रेम का गुलाल तूने मला मेरे गालों पे तो, शर्म से मैं लाल-लाल हो गई हूँ साँवरे।
वंशी की मधुर तान करती है भंग ध्यान इसके सुरों में कैसी खो गई हूँ साँवरे।
प्रीत की जो पड़ी धूप, निखरा है मेरा रूप, कैसी मैं अनूप आज हो गई  हूँ साँवरे।
बिना छुए कोई अंग, तेरे जैसा हुआ रंग, अपना मैं रंग सारा खो गई हूँ साँवरे।
— डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ 

डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ 'रश्मि'

पिता का नाम-स्व.देव प्रकाश कुलश्रेष्ठ माता का नाम-श्रीमती उर्मिला देवी जन्म स्थान-फिरोजाबाद शिक्षा-विज्ञान स्नातक, परास्नातक हिंदी विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि विद्यासागर की मानद उपाधि साहित्यिक उपलब्धियां- ख्यातिलब्ध पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर गीत गजलों आदि का प्रकाशन। रेडियो दूरदर्शन, ईटीवी उर्दू द्वारा काव्य पाठ , राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ मोबाइल नं-8953853333 व्हाट्सएप नं.-9453697029