लघुकथा

राजा

राजघराने के बेटे राजवीर को बचपन से घुट्टी पिलाई गयी थी, तुम्हे राजा बनना है, बड़े बड़े काम करना है। कभी छोटो को घास नहीं डालना, गाय, भैंस को तो कदापि नहीं, उनके नजदीक भी नहीं जाना। राजवीर बचपन से विदेश के होस्टल में पढ़े। जब पढ़लिख कर लौटे, तो राजा ने कहा, “बेटे, तुम्हें राजा बनना है, पूरा देश सम्हालना है, जाओ देशवासियों से बाते करो।” राजवीर सकते में आ गए क्योंकि उन्हें हिंदी नही आती थी। जबतक वो कई वर्षों में हिंदी सीखकर आये, एक कर्मयोगी बाबा को लोगों ने अपनी पसंद बना लिया था। राजवीर को विदेश में पलने के कारण जनता ने पहचानने से इनकार किया। एक गेरुए वस्त्र के बाबा, मछलियों को दाना डाल रहे थे, पकड़ने की कोशिश नहीं कर रहे थे। उनके नेक कर्म को जनता ने पहचाना और एक राजा की पदवी दी।
— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर