लघुकथा

प्रतिकार

सुनीता शादी करके ऐसे ससुराल में गयी जहां उसकी सुनने वाला कोई नही था, कोई अपना और हमदर्द नही था । हर कोई उसको दबाने की कोशिश करता और वो चुपचाप सब सहती रहती और सबके काम भी करती रहती। फिर भी ननदें देवर बिना बात के उसके साथ लड़ते और उसको बहुत तंग करते।ऊपर से पति भी ऐसे कि जैसे सब कुछ देख कर भी अनदेखा कर देते। वो जब भी ज्यादा परेशान होती चुपचाप अपने कमरे में जा कर रो लेती।
मायके जाती तो वहां भी किसी को कुछ न बताती। लेकिन एक माँ तो अपने बच्चे की रग रग से वाकिफ होती है। सुनीता की मम्मी ने भी अपनी बेटी का चेहरा देखकर ही जान लिया था कि बेटी ऊपर से खुश होने का दिखावा तो कर रही है लेकिन जो खुशी शादी के बाद लड़कियों के चेहरे पर होनी चाहिए वो नही दिख रही और शादी के पहले वाली चेहरे की चमक भी खो सी गयी है।
लेकिन उन्होंने अभी बेटी को ज्यादा कुरेदना ठीक नही समझा और उसको बोला,”देखो सुनीता बेटा.. अन्याय करना अगर गलत है तो अन्याय सहना उससे भी ज्यादा गलत है।अगर तुम खुद पहले किसी का बुरा नही करते तो अगर तुम्हारे साथ कोई गलत करे तो तुम्हे उसके खिलाफ भी खुद ही आवाज उठानी होगी।”सुनीता ने उनकी ये बात गांठ बांध ली।
अगली बार जब ननद देवर ने उसको साथ गलत व्यवहार किया तो सुनीता को मन ही मन माँ की बात याद करके जैसे हिम्मत आ गयी।उसने उनको बोला,”देखो मेरे साथ जो भी कोई कुछ गलत करता है मैं उसका आगे से गलत तो नही करती ना ही पलट के जवाब देती हूं लेकिन अपनी झोली उल्टी करके झाड़ देती हूं और मन ही मन प्रभु से प्रार्थना करती हूं कि हे प्रभु जिसने मुझे जो दिया वो वापिस उसी के पास ही चला जाये”
सुनीता की बात सुनकर सब सहम गए उसके बाद चाहे डर से ही सही  सुनीता को उन सबके व्यवहार में काफी परिवर्तन दिखाई दिया।सच मे जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदते हैं खुद उसमे गिरने के नाम से ही कितना डरते हैं।
— रीटा मक्कड़