गीत
पीर असहनीय हुई तब साथी गीत हुए ।
टूटे अनुबंध सभी ,दूर सभी मीत हुए ।
नयनों से मोती की झर झर बौछार हुई ।
यादों की लता पड़ी पीली बीमार हुई ।
विरहा की निष्ठुरता , सुख मेरे अतीत हुए।
टूटे अनुबंध सभी……………………
टेसू के फूल मुझे ,रक्तभरे घाव लगे ।
प्रकृति के रूप रंग ,दुश्मन के दाँव लगे।
कोयल के गीतों को सुनकर भयभीत हुए।
टूटे अनुबंध सभी ………………..
मन भागें लोगों से ,नीरवता मन भाये ।
तितली ,भौरें,बसंत बागों मे फिर आये।
फूल और काँटे सब एक से प्रतीत हुए ।
टूटे अनुबंध सभी…………………..
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी