लघुकथा

दर्द

“मम्मी.इ ..” गोलू जोर से चीखा।

“क्या हुआ बेटा ?” उसकी चीख सुनकर नैना तड़प कर उसके कमरे में भागी आई।
“मम्मी..ये देखो न, मेरी उँगली कट गई। बड़े जोरों का दर्द हो रहा है।”
“कैसे कट गई तुम्हारी उँगली ?…अरे, ये तो बहुत खून बह रहा है।” उसकी माँ अधीरता से प्रथमोपचार की पेटी लेने दूसरे कमरे की ओर दौड़ पड़ी।
इस बीच गोलू सुबकता रहा। नैना ने उसकी उँगली में दवाई लगाकर पट्टी बाँध दी। दस वर्षीय गोलू ने अपनी उँगली की तरफ देखते हुए कहा, “मम्मी, एक बात पूछूँ ?”
“हाँ, बेटा ! बोलो, क्या पूछना चाहते हो ?”
“मम्मी.. मेरी ऊँगली से थोड़ा सा खून बह गया तो तुम तड़प उठीं और मुझे भी बड़े जोरों का दर्द हो रहा था। कल हम जिस बकरे का गोश्त इतने चाव से खा रहे थे उसे कितना दर्द हुआ होगा ?..और फिर उसकी मम्मी कितना रोई होगी ?”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।