अब भी बाकी है
मेरे आईने को भी अज़ीज़ है तू,
उनमें तेरा अक्स अब भी बाकी है
तेरी रूह के छलावे से अचंभित हूं मै ,
जिनमें एहसास तेरा अब भी बाकी है
मैं तन्हा कभी रह नहीं पाती,
मेरे आस पास तेरी मौजूदगी अब भी बाकी है
हर पूर्णिमा को चाँद की राह ताकती हूं मैं,
उसमें तुझे देखने की ख्वाहिश अब भी बाकी है
मेरी हर साँस पर धड़कनों का तेज होना,
इनमें तेरे सांसों की खुशबू अब भी बाकी है
मेरे लबों पर हंसी का यूं ही खिल जाना,
तेरे लबों की ताजगी इनमें अब भी बाकी है
मेरी पलकों का शरमा कर यूं ही झुक जाना,
तेरी निग़ाहों का जादू इन पर अब भी बाकी है
मेरी किताबों के पन्नों में सिमटे फूल,
जिनमें तेरे प्रेम के अफसाने अब भी बाकी हैं
हर दिन हर लम्हा यूं ही गुजर रहे हैं,
पर तू थोड़ा – थोड़ा मुझमें अब भी बाकी है