कविता

अब भी बाकी है

मेरे आईने को भी अज़ीज़ है तू,
उनमें तेरा अक्स अब भी बाकी है
तेरी रूह के छलावे से अचंभित हूं मै ,
जिनमें एहसास तेरा अब भी बाकी है
मैं तन्हा कभी रह नहीं पाती,
मेरे आस पास तेरी मौजूदगी अब भी बाकी है
हर पूर्णिमा को चाँद की राह ताकती हूं मैं,
उसमें तुझे देखने की ख्वाहिश अब भी बाकी है
मेरी हर साँस पर धड़कनों का तेज होना,
इनमें तेरे सांसों की खुशबू अब भी बाकी है
मेरे लबों पर हंसी का यूं ही खिल जाना,
तेरे लबों की ताजगी इनमें अब भी बाकी है
मेरी पलकों का शरमा कर यूं ही झुक जाना,
तेरी निग़ाहों का जादू इन पर अब भी बाकी है
मेरी किताबों के पन्नों में सिमटे फूल,
जिनमें तेरे प्रेम के अफसाने अब भी बाकी हैं
हर दिन हर लम्हा यूं ही गुजर रहे हैं,
पर तू थोड़ा – थोड़ा मुझमें अब भी बाकी है

शिल्पी कुमारी

जन्म स्थान - पटना, बिहार जन्म तिथि - 05.02. 1990 शिक्षा - स्नातक :_ आर.पी.एस महिला कॉलेज, पटना मगध विश्वविद्यालय , बिहार । चित्र विषारद , प्राचीन कला केंद्र(चंडीगढ़) स्नातकोत्तर :- पटना विश्वविद्यालय, पटना, बिहार। उपलब्धियां _ प्रकाशित पुस्तक- अनंता (काव्य संग्रह) तथा विभिन्न राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं। संपर्क - डॉ. विवेकानन्द भारती, (वैज्ञानिक आईसीएआर-आरसीईआर, पटना), c/o किरण सिंह, क्षत्रिय रेजीडेंसी , 3rd फ्लोर, फ्लैट नंबर - 302, रोड नंबर - 6A, विजय नगर, रुकनपुरा, पटना- 800014 (बिहार) मोबाइल नंबर - 8709311857 ईमेल_ [email protected]