लघुकथा

सौगात

 

विदेशी राष्ट्राध्यक्ष की कार हिंदुस्तानी जमीन पर धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।
शहर के दोनों तरफ तने सफेद कपड़ों की दीवार देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ।
उन्होंने अपने सहयोगी से पूछा, “आखिर इन सफेद दीवारों के पीछे ऐसा क्या है जो यहाँ का प्रशासन हमें दिखाना नहीं चाहता ?”
“सर ! इन दीवारों के पीछे सस्ते वोटों की खेती है जहाँ सरकार कुछ रुपयों और शराब नामक खाद देकर अपने लिए वोटों की बंपर फसल उगाती है।”
“लेकिन इसमें छिपाने वाली बात क्या है ? पूरी दुनिया में सभी नेता अपने अपने चुनाव प्रचार में इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं।”
“सर, यही तो राज की बात है। दुनिया में महँगाई चाहे जितनी बढ़ जाए लेकिन यहाँ के वोटों की कीमत फिक्स है चंद रुपये और शराब ..और इनकी कीमत न बढ़ने पाए इसलिए ये नेता वोट लेने के बाद इन्हें देते हैं गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा व नारकीय जीवन की वो सौगात जो इन कपड़े की सफेद दीवारों के पीछे छिपा दी गई हैं।”

राजकुमार कांदु
स्वरचित / मौलिक

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।