संस्मरण

मेरी प्यारी नानी

सफेद सूट, लंबे-लंबे सफेद बाल, गोरा रंग, चमकता चेहरा, माथे पर तेज, आवाज में मिठास, हर बात पर मुस्कुराहट, हम सभी नाती-पोतों को खाना अपने ही हाथों से खिलातीं। सफाई पसंद इतनी कि मजाल है जो कपड़े पर एक दाग लग जाए या किसी को कम ज़्यादा मिल जाय। ऊपर से नीचे तक सफेद लिबास में हमारी नानी हम बच्चों की जान थीं। बड़े दुलार और प्यार से सबको सँभालती। हम बच्चे खाते-पीते, मौज मस्ती करते नानी से रोज किस्से-कहानी सुनते। नानी के छोटे से पुराने घर में बच्चों की फौज खूब उधम मचाती। गुड़िया की शादी में नानी ढेर सारा शरबत बनातीं तो कभी हलुआ-मलीदा। सबसे छोटी नन्हीं गोलू शरबत में अँगुली डालकर सब को चिढ़ाया करती। नानी के हाथ की खिचड़ी भी बिरयानी से ज्यादा लजीज बन जाती। सारे छोटे-बड़े बच्चे लड़ते-झगड़ते खाते-पीते उधम मचाते रहते। हम सभी मामू की पीठ पर चढ़ जाते और टिक टिक, टिक टिक, घोड़ा चला, घोड़ा चला बोलते जाते और मामू जी एक के बाद एक सबको सैर कराते। ननिहाल में सबसे बड़ी होने की वजह से नानी हर जगह मुझे साथ ले जातीं। घर के बाहर का सारा काम वह खुद ही करतीं। मामू दिन-रात नौकरी के लिए पढ़ाई करते। मुझे नानी से बातें करना उनके साथ रहना, उनकी मदद करना बहुत अच्छा लगता। मेरी छोटी बहन राबिया तो उनके पीछे-पीछे लगी रहती और पटरी पर चढ़कर उनके साथ में रोटी सिंकवाती थी। गर्मी की छुट्टियाँ और नानी के घर की छत, यादगार हैं वे पल। मामू हम लोगों के लिए ढेर सारी टॉफियाँ और खिलौने लाते। कभी जब रात में पूरे मोहल्ले में लाइट नही होती मोमबत्ती जला हम सारे बच्चे छत पर नज़र आते। बीच में बैठी नानी, सबका ध्यान आकर्षित करती उनकी कहानी। उनके जैसी मजेदार कचौड़ी और बिरयानी मैं आज भी नहीं बना पाती हूँ।
         नानी के जीवन संघर्ष की गाथा समय के कई पन्नों में समायी थी। उनका नाम था इफ्फत अजीज। वह संस्कारी, कर्तव्य परायण और मजबूत इरादे वाली महिला थी। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के नवाबी खानदान की बेटी थी। लोग नानी की एक झलक देख नहीं पाते। सर से पाँव तक वह ढकी रहती। बाहर पालकी में यहाँ से वहाँ जाया करती। आम जनता उनसे मिलकर मन मुग्ध हो जाती। उनके लिए नवाबी खानदान के तमाम रिश्ते आते थे। कम उम्र में ही एक खानदानी लड़के से उनका रिश्ता भी हो गया। अम्मी के मुँह से नानी की कहानी सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। पूछ बैठी, “अम्मी! तो क्या नाना अब्बू भी नवाब थे? क्या वह नवाबी खानदान के थे? नानी की शादी कैसे हुई उनसे ?अब  वो कहाँ चले गए?” तब मेरी उम्र मुश्किल से 10-11 साल ही रही होगी। इतने सारे सवाल एक साथ सुनकर मम्मी ने दुखी आवाज़ में बताया कि शादी के कुछ सालों बाद ही नाना का इंतकाल हो गया। उनकी आँखों में आँसू थे। तभी पीछे से नानी सब बच्चों के लिए आम काट कर ले आई और हम सब बच्चे आम खाकर खेलने लग गए। नाना के न होने के बावजूद भी नानी ने अम्मी, खाला और मामू लोगों को पढ़ाया-लिखाया। मामू को रेलवे में स्टेशन मास्टर की नौकरी मिली। नानी ने पूरे मोहल्ले में रसगुल्ले बँटवाए ,  बाँटने वाले थे मैं और छोटी राबिया। मैं सबके घरों में जा-जा कर बताती कि मेरे मामू को नौकरी मिल गई है और अब हम ट्रेन से हर जगह जाया करेंगे। नानी के कमरे में एक बड़ा सा बक्सा था। एक दिन नानी उसको ठीक कर रही थी। उसमें देखा उनकी शादी का पुराना लाल जोड़ा और कुछ तस्वीरें। मुझसे रहा नहीं गया। तस्वीर लेकर सब को दिखाने लगी। मम्मी ने वह तस्वीर हमसे ले ली और उसे फ्रेम करवाने के लिए रख लिया।  नानी, नाना अब्बू के साथ तस्वीर में बड़ी खूबसूरत लग रही थीं। लंबी काली चोटी , लाल गरारा,  मुझे बहुत खुशी हुई। अम्मी से जिद करने लगी कि नानी के बारे में और बातें बताइए न। आप लोगों का बचपन कैसा था? अम्मी की आँखों में आँसू आ गए थे। वह बोलीं कि  तुम्हारे नाना अब्बू के निधन के बाद सभी ने कई दिन भूखे रहकर तीसी फाँककर के दिन गुजारे, कभी-कभी तो कई दिन तक खाना नहीं मिलता था। अरे बाप लें! मेरे मुँह से निकल पड़ा था। तभी नानी पीछे से आ गई और मुझे गोद में बिठा लिया। अम्मी के सिर पर हाथ रखकर हम सब बच्चों को बताने लगी। तुम्हारे नाना की मृत्यु के पश्चात जीवन में संघर्ष प्रारंभ हो गया। बच्चों को पालने की जिम्मेदारी ने अंदर से मुझे तोड़ दिया। लेकिन हमने अल्लाह के सभी फैसले को स्वीकार किया और बच्चों को पालने में अपना सब कुछ लगा दिया। मुझे सबसे ज्यादा दुख तब हुआ जब यह पता चला की औरत की सुंदरता ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन होती है।  जब उनकी खूबसूरती उनके जीवन में बहुत बड़ी बाधा बनने लगी क्योंकि एक मजबूर औरत की सुंदरता से मोहित होकर बहुत लोग मदद के लिए आगे आते, मगर सभी मदद के नाम पर उनसे लाभ उठाने का प्रयास करते।लेकिन नानी ने केवल अपने बच्चों के पालन-पोषण व संस्कार देने के अपने उद्देश्य को पूरा करने में जीवन बिता दिया। अपनी सुंदरता से मोहित होने वाले लालची लोगों से अपना बचाव करने के लिए अपनी सुंदरता को नष्ट करने का निर्णय लिया। आगे जो अम्मी ने बताया उसको सुनकर मुझे यकीन ही नहीं हुआ। एक दिन उन्होंने अपने काले सुंदर बालों को कपड़े धोने के साबुन और कुम्हड़ा का पानी लगाकर सफेद कर दिया। लोग अपनी सुंदरता को बचाने के लाखों प्रयास करते हैं लेकिन नानी ने अपने आपको कुरूप बनाया।
      नानी के ऊपर एक और पहाड़ तब टूटा जब उनके बड़े बेटे यानी मेरे मामू एक कार एक्सीडेंट में दुनिया से चल बसे। वैसे ही कम उम्र में शौहर के जाने का दुख और बच्चों को अकेले पालन पोषण करके खुद को कुरूप करना जीवन को संघर्षों के साथ अपने जवान बेटे को अपनी आँखों के सामने मरता हुआ देखना कैसे एक माँ ने बर्दाश्त किया होगा ? और इसके साथ ही अपने बेटे की सरकारी नौकरी खुद न ले करके अपनी बहू को दिला देना और उसे बेटी बनाकर उसका दूसरा विवाह कर देना। यह सब कार्य किसी साधारण महिला के नहीं। नानी ने अपने जीवन काल में जो भी परेशानियों-कठिनाइयों का सामना किया वे शब्दो में बयान नहीं की जा सकतीं। आज भी उनके जीवन के संघर्ष की कहानी को सोचकर मेरे अंदर भी मजबूत संकल्पों का जन्म हो जाता है। आज भी उनके जीवन से प्रेरणा लेकर मैं बड़े से बड़े संघर्ष का दरिया पार कर जाती हूँ। आज वह हमारे बीच में नहीं है,लेकिन उनकी बताई हर अच्छी बात हमारे कानों में गूँजती है। नानी के संघर्षको देखकर मुझे अपने जीवन के संघर्ष बहुत कम दिखाई देते।
— आसिया फारूकी 

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र