तुझ से साथ उम्र भर का में चाहता हूं ,
में क्या करूं, में सिर्फ तुम्हें चाहता हूं।
भटकती रहती है रात भर आंखें दरबदर,
घने जंगल मे,चराग को शब में जलाता हूं।
ख़ूँ के आँसू याद तेरी रुलाती रही उम्र भर,
ज़ख्म-ए-जिगर को फिर में समझाता हूं।
दिल को झिंझोड़ते है सारे अज़ीज़ लफ़्ज़,
तेरे लिखे हजारों खत लोगो को सुनाता हूं।
उदास रूह का आँगन , बिर्हा बरस रही है,
फिर भी हवा की ज़द पे में दिया जलाता हूं।
— बिजल जगड