कविता

स्मृतियों का कलश

स्मृतियों के  स्वर्णकलश में,
पुष्पित   गुच्छ हजार  मिले,
कुछ मुस्काते कुछ मुरझाए,
स्वप्निल  मृदु आगार  मिले।

मौन साधकर  कुछ बैठे थे ,
कुछ  अनमन  से बोल पड़े,
कुछ  ने  नेह  सुधा बरसाई,
कुछ  गाठों  को  खोल पड़े।
तितली  के  रंगीन  पंख से,
रिश्तों   के   संसार   मिले।

अनायास कुछ रूठ गए थे,
कुछ मलयज से महक उठे,
कुछ ने  अपनापन  दर्शाया,
कुछ  बेमतलब  बहक उठे,
वर्षा की अधखिली धूप सा,
सतरंगी     अंबार     मिले।

जीवन  की  नेहिल पंखुड़ियां,
अभिनव  सा   परिहास  भरे,
कुछ   पहचाने   से   चेहरे थे,
भिन्न भिन्न   अहसास    भरे,
कानन को उपवन में परिणति,
करने   का    आधार   मिले।

स्मृतियों के  स्वर्णकलश में,
पुष्पित  गुच्छ  हजार  मिले,
कुछ  मुस्काते कुछ मुरझाए,
स्वप्निल  मृदु  आगार  मिले।

— सीमा मिश्रा

सीमा मिश्रा

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार, उ0प्रा0वि0-काजीखेड़ा,खजुहा,फतेहपुर उत्तर प्रदेश मै आपके लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका से जुड़कर अपने लेखन को सही दिशा चाहती हूँ। विद्यालय अवधि के बाद गीत,कविता, कहानी, गजल आदि रचनाओं पर कलम चलाती हूँ।