मुक्तक/दोहा

ये जो है…जिंदगी

काटोगे तो जिंदगी बस, ये केवल बोझ लगती है
जीने जो लग जाओ तो, जिंदगी ये मौज लगती है।
फिक्र फेंक दो कुंए में, होगा जो भी देखा जायेगा
वो सुलाता नहीं भूखा, भूख तो हर रोज लगती है।।

कभी भी मिटती नहीं, लालसायें इस इंसान की
दिन रात कमाता फिरे, मिटे न तृष्णा शैतान की।
मनोवृति ही है ये, अग्नि जो ये हर दिन है बढ़ती
पर सब छोड़ना होगा, डोर खिंच चुकी कमान की।।

करता चिंता परिवार की, रहता प्रतिदिन खटता
दिन भर भागम-भाग से, ये दिमाग भी है फटता।
होगा क्या? जानता नहीं, फिर भी लगा ही रहता
सबकी खुशियों की खातिर, सदा प्रभु को रटता।।

स्वयं के लिए जी लो, स्वयं के लिए ही मर लो
जो भी मन में आए वो, अपने लिए भी कर लो।
चिंता छोड़ भविष्य की, कुछ समय निकाल कर
हो शांत खुद में ही, जीवन उल्लास से भर लो।।

सुधीर मलिक

भाषा अध्यापक, शिक्षा विभाग हरियाणा... निवास स्थान :- सोनीपत ( हरियाणा ) लेखन विधा - हायकु, मुक्तक, कविता, गीतिका, गज़ल, गीत आदि... समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे - शिक्षा सारथी, समाज कल्याण पत्रिका, युवा सुघोष, आगमन- एक खूबसूरत शुरूआत, ट्रू मीडिया,जय विजय इत्यादि में रचनायें प्रकाशित...