गीत
समय बीतता गया, साथ मे, उर के सारे घाव भर गये ।
वधिक ! तुझे यह रहे स्मरण ,लेकिन सारे घाव याद हैं।
शंकाओं में सदा जिया तू ,निर्दोषों की हत्या करके।
तुझको नही तृप्त कर पाये लेकिन वह बेचारे मरके।
वातावरण शोक का अपने ,जहाँ गया तू साथ ले गया,
तुझको शाप दिया लोगों ने आँखों मे आँसू भर भर के।
नियम प्रकृति के बहुत क्रूर है, उसको तेरे दाँव याद हैं।
वधिक! तुझे यह रहे स्मरण……………
अहंकार मे डूब गया तू, दयारहित तू दनुज हो गया।
तुझको क्या ,तू जरा न टूटा भले कोई चिरनींद सो गया।
ध्यान रहे सब छिन जायेगा, कुछ भी नही यहाँ स्थायी,
देख सुबह का तपता सूरज ,शाम क्षितिज के तीर खो गया।
लघु को लघु मत समझ ! तुझे क्या वह वामन के पाँव याद हैं?
वधिक ! तुझे……
समय तुझे कमजोर करेगा ,तब पापी तू पछतायेगा।
तब तक सारा समय हाथ से बालू सरिस सरक जायेगा।
जब खुद को पीड़ा होगी ,तब पीड़ा को पहचान सकेगा,
तब तुझको यह पाप तेरा, बस पीड़ा में ही भरमायेगा ।
जंगल को तेरे पापों के, सारे जोड़ घटाव याद हैं ।
वधिक ! तुझे…………….
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी