नींद
गाँवों में नींद मीठी होती
बौराये आमों तले
कोयल की कूक भी मीठी होती
नयनों से कैसे कहे।
पत्तों से झाँकती सूरज की किरणें
तपीश को ठंडा कर देती
खेत से पुकारती आवाजें
सुबह की बयार को मीठा कर देती
नयनों से कैसे कहे।
गोरी के पनघट पे जाने से
पायल कानों में मिठास घोल देती
बैलो की घंटियाँ मीठी बातें कहती
नदिया इन्ही मिठासो से इठलाती बहती
नयनों से कैसे कहे।
— संजय वर्मा “दृष्टि “