ठुकरा मत दो, प्यार करो
गलत है, अनदेखा चलना
बड़े-बूढों को, उनके कदमों को,
दिल से सच्चे होते हैं वे
अपने को एक जीव मानते हैं,
भेद नहीं करते, दीन – दुःखियों को
अपने दिल पर लगाते हैं
देवी-देवता से बढ़कर वे
मानवता को महान मानते हैं,
बड़ाई उन्हीं के नाम हैं
नित्य – सत्य संकल्पना में
जीवन की अपनी परिभाषा है
अपनी कमाई की रोटी
वे खाते हैं, भोगी नहीं त्यागी होते हैं,
फूल-फलों से लदे पेड़ हैं वे
खुशबू फैली रहती जग के चहुँ ओर
समय के साथ कदम लेते
खोज़ है, एक आविष्कार है उनकी जिंदगी
अनुभव का सार है अपने जमाने का
बड़े होना, बूढ़ा बन जाना
परिणति की अवस्था है वह
गलत है, अनसुना चलना
समता – ममता, बंधुता – भाईचारे की
भव्य वाणी को ठुकरा देना,
पके – फल स्वादिष्ट होते हैं,
ऊर्जा हमें देती है आगे बढ़ने का
ठुकरा मत दो, प्यार करो।
— पैड़ाला रवींद्र नाथ